लोकसभा ने 31 जुलाई 2018 को दिवाला और दिवालियापन संहिता (दूसरा संशोधन) विधेयक, 2018 पारित किया. यह विधेयक 23 जुलाई 2018 को संसद में पेश किया गया था.
इसे दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता संशोधन अध्यादेश 2018 के स्थान पर लाया गया है, जिसे राष्ट्रपति ने 6 जून 2018 को लागू किया था.
उद्देश्य: |
इस विधेयक का उद्देश्य ऋण शोधन अक्षमता और दिवाला कानून-2016 में संशोधन करना है, ताकि किसी रियल एस्टेट परियोजना के आवंटियों को ऋणदाता घोषित किया जा सके. |
विधेयक से संबंधित मुख्य तथ्य:
- इस विधेयक में ऋणदाताओं की समिति द्वारा रोजमर्रा के कामकाज पर निर्णय लेते समय मतदान की नौबत आने पर ऋणदाताओं की भागीदारी 75 प्रतिशत से घटाकर 51 प्रतिशत कर दी गई है. कुछ महत्वपूर्ण निर्णयों के लिए, यह सीमा घटाकर 66 प्रतिशत कर दी गई है.
- इस विधेयक में राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) में दायर याचिका को वापस लेने का प्रावधान भी किया गया है. यह निर्णय लेनदारों की समिति के 90 प्रतिशत की मंजूरी के साथ लिया जा सकता है.
- संशोधन के जरिये सूक्ष्म, लघु तथा छोटे उद्यमों के निदेशकों को उनकी कंपनी की समाधान प्रक्रिया में शामिल होने की छूट दी गयी है, हालांकि यह छूट देना केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में होगा.
- कानून के तहत बड़ी कंपनियों के निदेशकों को समाधान प्रक्रिया से बाहर रखा गया है.
- संशोधन के जरिये यह भी प्रावधान किया गया है कि यदि किसी रियल स्टेट कंपनी का मामला एनसीएलटी के पास समाधान के लिए जाता है तो उसकी परियोजना में पैसा लगाने वाले ग्राहक भी ऋणदाता माने जायेंगे और इस प्रकार उन्हें ऋणदाताओं की समिति में जगह मिल जायेगी.
- दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता दूसरा संशोधन विधेयक 2018 के उद्देश्यों एवं कारणों के अनुसार, विधेयक की धारा 5 के खंड 8 के अधीन एक स्पष्टीकरण को अंत:स्थापित करने के संबंध में भूसंपदा परियोजना के अधीन किसी आवंटी से प्राप्त की गई किसी रकम को ऐसी रकम के रूप में माना जाएगा जिसका उधार के रूप में वाणिज्यिक प्रभाव है.
- नई धारा 12(क) को अंत:स्थापित करने से लेनदारों की समिति के 90 प्रतिशत मतदान शेयर के अनुमोदन के साथ आवेदक द्वारा किये गए किसी आवेदन पर न्यायनिर्णायक प्राधिकारी द्वारा दिवाला समाधान प्रक्रिया आरंभ करने के लिये स्वीकार किया जाएगा.
- संशोधन के जरिए यह प्रावधान किया गया है कि किसी रियल इस्टेट परियोजना में अलॉटी से प्राप्त आय को ऋण माना जाएगा. इससे मकान खरीदने वालों को भी बिल्डर के खिलाफ समाधान प्रक्रिया शुरू करने का अधिकार मिल जाएगा.
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