नेपाल ने वर्ष 2015 के भूकंप के बाद विश्व की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई संयुक्त रूप से फिर से मापने की भारत की पेशकश को खारिज कर दिया है. नेपाल अब खुद ही यह काम करेगा.
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नेपाल इस काम को पूरा करने के लिए जरूरी आंकड़े हासिल करने के सिलसिले में भारत और चीन से मदद मांगेगा. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के तहत आने वाली 250 साल पुरानी संस्था 'सर्वे ऑफ इंडिया' ने माउंट एवरेस्ट को नेपाल के सर्वेक्षण विभाग के साथ 'भारत-नेपाल संयुक्त वैज्ञानिक अभ्यास' के रूप में फिर से मापने का प्रस्ताव किया था.
इससे संबंधित मुख्य तथ्य:
• चीन ने 1975 और 2005 में एवरेस्ट की ऊंचाई मापी थी, जबकि भारतीय सर्वेक्षकों ने 1956 में ऐसा ही एक कार्य किया था. भारत के महासर्वेक्षक ने भी ब्रिटिश काल में एवरेस्ट की ऊंचाई मापी थी.
• भारत के महासर्वेक्षक सर जॉर्ज एवरेस्ट के नेतृत्व में भारत प्रथम देश था, जिसने 1855 में माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई घोषित की और इसे दुनिया की सबसे ऊंची चोटी बताया. परियोजना पर शुरुआती कार्य आरंभ हो चुका है और वे सर्वेक्षण के लिए प्राथमिक डेटा एकत्र कर रहे हैं.
• हालांकि, भारत को समतलन डेटा प्रदान करने के लिए अनुरोध किया जा रहा है जबकि चीन को गुरुत्वाकर्षण डेटा प्रदान करने के लिए कहा गया है. माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई निर्धारित करने के लिए डेटा बहुत महत्वपूर्ण होगा.
पृष्ठभूमि:
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के एक बयान के मुताबिक 2015 में नेपाल में आए भीषण भूकंप के बाद इस सर्वोच्च पर्वत चोटी की ऊंचाई को लेकर वैज्ञानिक समुदाय ने कई संदेह जाहिर किए हैं. अप्रैल 2015 में 7.8 की तीव्रता से आए भूकंप ने नेपाल में तबाही मचाई थी, जिसमें 8,000 से अधिक लोग मारे गए थे, जबकि लाखों अन्य बेघर हो गए थे.
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