13 जनवरी 2015 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यून (एनजीटी) ने निर्मल यमुना पुनरुद्धार योजना 2017 के तहत यमुना नदी को साफ करने के लिए दिशा निर्देश जारी किए. ये दिशा निर्देश एनजीटी की प्रमुख बेंच की चेयरपर्सन न्यायाधीश न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार द्वारा दिए गए.
ट्रिब्यूनल का यह फैसला मनोज मिश्रा द्वारा यमुना के प्रदूषण और दिल्ली में इसमें गिरने वाले नाले के विरुद्ध लगाई गई याचिका के कारण सुनाया गया.
बेंच द्वारा दिए गए दिशा निर्देश:
यमुना नदी में धार्मिक वस्तुएं या कचरा फेंकने वाले व्यक्ति पर 5000 रुपये के जुर्माने का प्रावधान किया गया.
यमुना में निर्माण सामग्री फेंकने पर प्रतिबंध लगाया गया है, जबकि इसका उल्लंघन करने वालों पर 5000 रुपये का जुर्माना लगाया गया है.
बाढ़ वाले हिस्से में रियल एस्टेट डेवलपर्स द्वारा किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य न किया जाए.
प्रदेशों को भी निर्देशित किया गया है.यमुना और इसकी सहायक नदियों के प्रवाह को दिल्ली में यमुना तक जारी रखना सुनिश्चित करने के लिए वे योजना बनाएं और आगे आएं.
इन निर्देशों के अनुपालन के लिए एक समिति गठित करने का निर्णय-
बेंच ने एक समिति बनाने का फैसला किया है, जो उक्त निर्णयों के अनुपालन की जिम्मेदारी तय करेगी. समिति में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय (एमओईएफ) के प्रमुख सचिव, जल संसाधन मंत्रालय के संयुक्त सचिव, दिल्ली के मुख्य सचिव और हरियाणा, उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड राज्य सरकार के सचिव शामिल हैं. विशेषज्ञ समिति के सदस्य एनजीटी द्वारा पहले ही चयनित किए जा चुके हैं- इसमें दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एमेरिटस सी आर बाबू, जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर बृज गोपाल और आईआईटी दिल्ली के प्रोफेसर ए के गोसाईं को भी मुख्य समिति का सदस्य बनाया गया है. केंद्र सरकार द्वारा यमुना नदी को साफ करने के लिए जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी के सहयोग से यमुना एक्शन प्लान (वाइएपी) लागू किया गया है, जो अधिक सफल नहीं रहा.
Comments
All Comments (0)
Join the conversation