भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व महानिदेशक प्रोफेसर बीबी लाल (ब्रज बासी लाल) का 9 सितम्बर को निधन हो गया। बीबी लाल 101 साल के थे और उन्होंने दिल्ली स्थित अपने आवास पर अंतिम सांस ली। प्रोफेसर बीबी लाल ने 1968 से 1972 तक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक रहे और निदेशक के रूप में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज, शिमला में भी कार्य किया है और साथ ही उन्होंने ने यूनेस्को की विभिन्न समितियों में भी कार्य किया।
बीबी लाल सबसे ज्यादा चर्चा में अयोध्या की बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे की नींव में मंदिर के अवशेष मौजूद होने की खोज को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा में आए थे। इसी खोज की वजह से वह इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज हो गए| 1975-76 में, लाल ने एएसआई (ASI) द्वारा वित्त पोषित "रामायण स्थलों की पुरातत्व" परियोजना पर काम किया, जिसमें उन्होंने हिंदू महाकाव्य रामायण में वर्णित पांच स्थलों अयोध्या, भारद्वाज आश्रम, नंदीग्राम, चित्रकूट और श्रृंगवेरापुर की खुदाई की।
व्यक्तिगत जीवन
लाल का जन्म 2 मई 1921 को झांसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था। वे दिल्ली में रहते थे जहाँ पर उन्होंने अंतिम साँस ली और उनके तीन बेटे है। उनके सबसे बड़े बेटे, राजेश लाल, एयर वाइस मार्शल, भारतीय वायु सेना से सेवानिवृत्त है, उनके दूसरे बेटे व्रजेश लाल और तीसरे, राकेश लाल, लॉस एंजिल्स, कैलिफोर्निया में बिज़नेस चलाते हैं।
कैरियर
- लाल ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय, भारत से संस्कृत में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की थी।
- बीबी लाल ने अपनी पढ़ाई के बाद पुरातत्व में रुचि विकसित की और 1943 में, एक अनुभवी ब्रिटिश पुरातत्वविद्, मोर्टिमर व्हीलर के तहत खुदाई में ट्रेनी बन गए, जो तक्षशिला से शुरू हुआ, और बाद में हड़प्पा जैसे स्थलों पर खत्म हुई।
- लाल पचास से अधिक वर्षों तक पुरातत्वविद् के रूप में काम करते रहे थे।
- 1968 में, उन्हें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का महानिदेशक नियुक्त किया गया, जहाँ वे 1972 तक रहें।
- इसके बाद, लाल ने भारतीय उन्नत अध्ययन संस्थान, शिमला के निदेशक के रूप में भी कार्य किया।
- भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर (IIT, कानपुर) में बी.बी. लाल की स्थापना उनके पुत्र व्रजेश लाल ने पुरातात्विक कार्यों से संबंधित विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में अनुसंधान को प्रोत्साहित करने के लिए की है।
पुरस्कार और सम्मान:
प्रोफेसर बीबी लाल को कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया था जिसमें है -
- 1979 में नालंदा विश्वविद्यालय के नव नालंदा महाविहार द्वारा विद्या वरिधि की उपाधि से सम्मानित किया गया।
- 1982 में मिथिला विश्वविद्यालय द्वारा महाहोपाध्याय की उपाधि से सम्मानित किया गया।
- वर्ष 1991 में जीवन के लिए मानद फैलोशिप, एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल द्वारा दिया गया।
- वर्ष 1994 में रूस द्वारा डी. लिट. (ऑनोरिस कौसा) ‘सेंट पीटर्सबर्ग एकेडमी ऑफ साइंस’ द्वारा सम्मानित किया गया।
- वर्ष 2000 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
- वर्ष 2021 में भारत सरकार द्वारा देश के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया गया था।
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