सुप्रीम कोर्ट के 09 मई 2018 को पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि संसदीय समितियों की रिपोर्ट को चुनौती नहीं दी जा सकती और ना ही उनकी वैधता पर अदालतों में सवाल उठाया जा सकता है.
यह निर्णय पांच न्यायाधीशों की पीठ ने लिया जिसमें मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा और जस्टिस ए के सिकरी, एएम खानविलकर, डीवाई चंद्रचुद और अशोक भूषण शामिल थे.
सुप्रीम कोर्ट का फैसला |
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पृष्ठभूमि:
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने कल्पना मेहता की जनहित याचिका पर अपना फैसला सुनाया. साल 2014 के संसदीय समिति की रिपोर्ट को आधार बनाकर याचिकाकर्ता कल्पना ने कोर्ट से इन वैक्सीन के लाइसेंस को रद्द करने का आदेश देने की मांग की थी.
पांच जजों का संविधान पीठ ने फैसला सुनाया है कि क्या कोर्ट में संविधान के अनुच्छेद 32 या अनुच्छेद 136 के तहत दाखिल याचिका पर कोर्ट संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट को रेफरेंस के तौर ले सकती है और इस पर भरोसा कर सकता है?
क्या ऐसी रिपोर्ट को रेफरेंस के उद्देश्य से देखा जा सकता है और अगर हां तो किस हद तक इस पर प्रतिबंध रहेगा?
ये देखते हुए कि संविधान के अनुच्छेद 105, 121, और 122 में विभिन्न संवैधानिक संस्थानों के बीच बैलेंस बनाने और 34 के तहत संसदीय विशेषाधिकारों का प्रावधान दिया गया है.
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