सुप्रीम कोर्ट ने 2 जनवरी 2017 को एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि धर्म, जाति, समुदाय के नाम पर वोट मांगना असंवैधानिक है.
सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी.एस.ठाकुर की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने जन प्रतिनिध अधिनियम की धारा 123(3) के आधार पर यह निर्णय दिया. कुल चार मतों में से तीन मत इस निर्णय के पक्ष में दिए गये. कोर्ट का यह निर्णय हिंदुत्व केस से सम्बंधित याचिका की सुनवाई के दौरान दिया गया.
इस पीठ में न्यायमूर्ति टी.एस.ठाकुर के अतिरिक्त, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर, न्यायमूर्ति यू यू ललित तथा न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ शामिल थे.
कोर्ट ने कहा कि चुनाव एक धर्मनिरपेक्ष प्रक्रिया है तथा इसमें इस प्रकार के स्वार्थ निहित क्रियाकलापों को शामिल नहीं किया जाना चाहिए.
निर्णय के मुख्य बिंदु
• फैसले में बताया गया कि संविधान में राजनीति और धर्म को आपस में मिश्रित नहीं किये जाने का निर्देश दिया गया है.
• एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र होने पर किसी को भी किसी भी धार्मिक सम्प्रदाय के साथ जुड़ने का अधिकार है.
• चुनावों की पूरी प्रक्रिया धर्मनिरपेक्ष होनी चाहिए.
• कोई भी सरकार किसी एक धर्म के साथ विशेष व्यवहार नहीं कर सकती और धर्म विशेष के साथ स्वयं को नहीं जोड़ सकती.
• इस निर्णय में कहा गया कि भगवान और मनुष्य के मध्य संबंध उनका निजी मामला है इसमें राज्य का दखल प्रतिबंधित है.
धारा 123 (3), जन प्रतिनिधि क़ानून
जनप्रतिनिधि कानून की धारा 123 (3) के अनुसार किसी उम्मीदवार द्वारा नागरिकों से उनके धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय अथवा भासा के आधार पर वोट के लिए अपील करना अथवा उम्मीदवार के निर्वाचन की संभावनाओं को आगे बढ़ाने के लिए या प्रभावित करने के लिए धार्मिक प्रतीकों या राष्ट्रीय प्रतीकों का इस्तेमाल करना’ भ्रष्ट तरीका माना जाएगा.
Comments
All Comments (0)
Join the conversation