श्रीलंका ने 09 दिसम्बर 2017 को हंबनटोटा बंदरगाह 99 साल के लिए औपचारिक रूप से चीन को सौंप दिया. एक समझौते के तहत 99 साल के लिए बंदरगाह का नियंत्रण चीनी कंपनियों को दिया गया है.
दो चीनी कंपनियां हंबनटोटा इंटरनेशनल पोर्ट ग्रुप और हंबनटोटा इंटरनेशनल पोर्ट सर्विसेज अब इस बंदरगाह का कामकाज संभालेंगी. श्रीलंका सरकार ने चीन के महत्वाकांक्षी वन बेल्ट-वन रोड परियोजना का हिस्सा बनने की भी घोषणा की है. विपक्ष ने इस परियोजना के जरिये सरकार पर देश को बेचने का आरोप लगाया है.
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मुख्य तथ्य:
• श्रीलंका में चीनी नौसेना की मौजूदगी भारत के लिए लंबे समय से चिंता का विषय रही है. हंबनटोटा बंदरगाह का नियंत्रण मिल जाने पर यह चिंता और बढ़ गई है.
• इस बंदरगाह को विकसित करने और कुछ अन्य परियोजनाओं के लिए चीन ने श्रीलंका को आठ अरब डॉलर (51 हजार करोड़ रुपये) का कर्ज दिया है.
• बंदरगाह के नजदीक बनने वाला आर्थिक क्षेत्र और वहां होने वाले औद्योगिकीकरण से इलाके का विकास होगा. इलाके को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की भी योजना है.
• विपक्ष और मजदूर संगठनों ने इस परियोजना के जरिये सरकार पर देश और राष्ट्रीय संपदा को चीन के हाथ बेचने का आरोप लगाया है.
• श्रीलंका सरकार ने जुलाई 2017 में 1.1 अरब डॉलर (सात हजार करोड़ रुपये) में हंबनटोटा बंदरगाह का 70 फीसद हिस्सा बेचने का सौदा भी चीन के साथ कर रखा है.
• चीन अपनी वन बेल्ट-वन रोड परियोजना के तहत इस बंदरगाह का बड़ा उपयोग कर सकता है. यहां से व्यापारिक गतिविधियों के साथ सैन्य गतिविधियां भी संचालित की जा सकती हैं.
• हंबनटोटा बंदरगाह दक्षिण भारत के काफी नजदीक है. अब तक सामरिक दृष्टिकोण से दक्षिण भारत सुरक्षित माना जाता रहा है. लेकिन चीन के इस कदम के बाद भारत को दक्षिण में भी अपनी सुरक्षा पर खास ध्यान देना होगा.
• चीन कई सालों से हिंद महासागर स्थित देशों और द्वीपों पर सामरिक तौर पर अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश में लगा है.
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