उच्चतम न्यायालय ने 04 जनवरी 2018 को बिहार क्रिकेट एसोसिएशन को रणजी ट्राफी और अन्य राष्ट्रीय स्तर की क्रिकेट प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने की मंजूरी दे दी. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाली तीन सदस्यीय पीठ ने ये मंजूरी दी.
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाली पीठ ने स्पष्ट किया कि बिहार को क्रिकेट खेलना चाहिए. इससे पहले बिहार की टीम को राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने की स्वीकृति नहीं थी. उच्चतम न्यायालय ने बिहार क्रिकेट एसोसिएशन (बीसीए) के सचिव आदित्य वर्मा की याचिका पर यह फैसला सुनाया है.
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उच्चतम न्यायालय ने कहा की बिहार को घरेलू स्पर्धाओं में भाग लेने देना क्रिकेट के हित में है. बिहार की टीम ने अंतिम बार वर्ष 2003-2004 में रणजी ट्रॉफी खेली थी और उस समय महेन्द्र सिंह धोनी टीम के कप्तान थे. अब बिहार की टीम अगले रणजी ट्रॉफी सेशन में हिस्सा ले सकेगी. उच्चतम न्यायालय के निर्देश के बाद अब बिहार के क्रिकेटरों का वह सपना पूरा हो गया, जो पिछले करीब दशक भर से लंबित पड़ा था.
पृष्ठभूमि:
गौरतलब है कि बिहार वर्ष 2001 से बीसीसीआई का पूर्ण सदस्य नहीं है. उस वक्त बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष जगमोहन डालमिया ने बिहार क्रिकेट एसोसिएशन की पूर्ण सदस्यता खत्म कर दी थी. बिहार की जगह झारखंड को पूर्ण सदस्यता दी गई थी जो कि बिहार से विभाजित होकर अलग राज्य बना था. पिछले साल बीसीसीआई ने अपने घरेलू कार्यक्रम में बदलाव करते हुए जूनियर और महिला क्रिकेट मैचों में नॉर्थ ईस्ट राज्यों और बिहार को खेलने की इजाजत दी थी. वर्ष 1935 में बिहार क्रिकेट संघ की स्थापना हुई थी.
15 अगस्त 2004 को एक तिहाई बहुमत के आधार पर बिहार क्रिकेट संघ का नाम बदल कर झारखंड राज्य क्रिकेट संघ कर दिया गया और इस तरह झारखंड को पूर्ण सदस्यता मिल गई थी.
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