सर्वोच्च न्यायालय की तीन न्यायाधीशों वाली पीठ ने 26 मई 2020 को प्रवासी श्रमिकों के मामले में स्वप्रेरणा से संज्ञान (सुओ मोटो कोग्निसेंस)लिया है और इस बात की ओर ध्यान आकर्षित किया है कि लॉकडाउन के दौरान प्रवासी श्रमिकों के लिए व्यवस्था करने के संबंध में केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से अपनी जिम्मेदारी निभाने में "अपर्याप्तता और कुछ ख़ामियां" देखी गई हैं.
स्वप्रेरणा से संज्ञान क्या है?
स्वप्रेरणा अर्थात सुओ मोटो एक लेटिन वाक्यांश है जिसका अर्थ “स्वयं कुछ करना” होता है. इसका मतलब है कि न्यायालय ने कोई मामला स्वयं अपने संज्ञान से और किसी भी वादी के बिना विचारार्थ लिया है. वादी ऐसा व्यक्ति या संस्था होता है जो न्यायालय में कोई मुकदमा या याचिका दायर करता है. न्यायालय के सामान्य मामलों में एक वादी और प्रतिवादी की जरूरत होती है, जबकि स्वप्रेरित संज्ञान में कोई भी व्यक्ति या संस्था वादी नहीं होता है.
वर्तमान मामले में, भारत में लागू लॉकडाउन के दौरान असहाय प्रवासियों को हजारों मील की यात्रा पैदल या साइकिल से करने के लिए मजबूर होने के संबंध में अखबारों और मीडिया की रिपोर्टों के आधार पर न्यायालय ने स्वप्रेरणा से यह संज्ञान लिया है.
सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश
न्यायाधीश अशोक भूषण की अध्यक्षता में सर्वोच्च न्यायालय की तीन न्यायाधीशों वाली पीठ ने केंद्र और राज्य सरकारों को आदेश दिया है कि फंसे हुए प्रवासी श्रमिकों को तुरंत मुफ़्त परिवहन, भोजन और आश्रय उपलब्ध करवाया जाए. न्यायालय ने केंद्र की ओर से प्रवासियों के कष्टों को दूर करने के लिए किए गए उपायों के बारे में सॉलिसिटर-जनरल तुषार मेहता को 28 मई, 2020 तक अदालत को सूचित करने के लिए भी कहा है.
अब आगे क्या होगा?
न्यायालय ने केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अपनी प्रतिक्रियायें दर्ज कराने के लिए औपचारिक नोटिस जारी किया है.
Comments
All Comments (0)
Join the conversation