सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त 2017 को तीन तलाक के मुद्दे पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इसे खारिज कर दिया. मुख्य न्यायाधीश खेहर की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने तीन तलाक को 3-2 से खारिज किया. सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों न्यायाधीश कुरियन, न्यायाधीश जोसेफ, जस्टिस नरीमन और न्यायाधीश ललित ने तलाक को गैर संवैधानिक और मनमाना करार दिया.
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा कानून बनाए जाने तक तीन तलाक पर रोक जारी रहेगा. केंद्र सरकार इस मामले में संसद में कानून पारित कर इसे लागू करे. संविधान पीठ ने तीन तलाक की परंपरा को चुनौती देने वाली मुस्लिम महिलाओं की अलग -अलग पांच याचिकाओं सहित सात याचिकाओं पर सुनवाई की.
सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक पर फैसला सुनाते हुए कहा है कि 6 महीने तक तीन तलाक पर रोक लगाई जाए तथा संसद इस पर कानून बनाये. तीन तलाक पर न्यायाधीश जेएस खेहर के बाद बारी-बारी से चार जजों ने फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट में सबसे पहले मुख्य न्यायाधीश खेहर ने फैसला पढ़ना शुरू किया.
प्रमुख तथ्य-
- सुप्रीम कोर्ट के अनुसार तीन तलाक की धारा 14, 15 और 21 का उल्लंघन नहीं है. यानी तीन तलाक असंवैधानिक घोषित नहीं किया जा सकता.
- इस मामले में सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि वह बहुविवाह के मुद्दे पर विचार नहीं करेगी. न्यायलय केवल इस विषय पर गौर करेगा कि तीन तलाक मुस्लिमों द्वारा 'लागू किये जाने लायक' धर्म के मौलिक अधिकार का हिस्सा है या नहीं.
पृष्ठभूमि-
मार्च, 2016 में उतराखंड निवासी शायरा बानो नाम की महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके तीन तलाक, हलाला निकाह और बहु-विवाह की व्यवस्था को असंवैधानिक घोषित किए जाने की मांग की.
शायरा बानो ने मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन कानून 1937 की धारा 2 की संवैधानिकता को चुनौती दी. शायरा बानो द्वारा कोर्ट में दाखिल याचिका के अनुसार मुस्लिम महिलाओं के हाथ बंधे होते हैं और उन पर तलाक की तलवार लटकी रहती है.
मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड और जमीयत की दलील-
मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के अनुसार यह अवांछित तो है किन्तु वैध है. यह पर्सनल ला का हिस्सा है और कोर्ट इसमे दखल नहीं दे सकता. यह प्रथा 1400 साल से जारी है, यह आस्था का विषय है, संवैधानिक नैतिकता और बराबरी का सिद्धांत इस पर लागू नहीं किया जा सकता. पर्सनल ला को मौलिक अधिकारों की कसौटी पर नहीं परखा जा सकता.
सरकार की दलील-
- केंद्र सरकार का मानना है कि यह महिलाओं को संविधान मे मिले बराबरी और गरिमा से जीवनजीने के हक का हनन है. यह धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है इसलिए इसे धार्मिक आजादी के तहत संरक्षण नहीं मिल सकता.
- पाकिस्तान सहित 22 मुस्लिम देशों में इसे खत्म किया जा चूका है.
- धार्मिक आजादी का अधिकार बराबरी और सम्मान से जीवन जीने के अधिकार के आधीन है.
- अगर कोर्ट ने हर तरह का तलाक खत्म कर दिया तो सरकार नया कानून लाएगी.
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