सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में 11 मई 2017 को मुस्लिम महिलाओं के अधिकार और उनके जीवन से संबंधित तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुपत्नी प्रथा की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बड़ी सुनवाई जारी है.
प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ इससे संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है.
इस याचिकओं पर सुनवाई करने वाले पांच न्यायाधीश अलग-अलग पांच धर्मों से है, मुख्य न्यायाधीश जे एस खेहर (सिख), न्यायाधीश कुरियन जोसेफ (ईसाई), न्यायाधीश रोहिंटन नरीमन (पारसी), न्यायाधीश उदय ललित (हिंदू) और न्यायाधीश अब्दुल नजीर (मुस्लिम).
सुनवाई शुरू करते हुए प्रधान न्यायाधीश जस्टिस जगदीश सिंह खेहर ने कहा कि तीन तलाक अगर धर्म का हिस्सा है तो अदालत दखल नहीं देगी.
सुप्रीम कोर्ट में होने वाली इस सुनवाई में इनमें पांच याचिकाएं मुस्लिम महिलाओं ने दायर की हैं, जिसमें मुस्लिम समुदाय में प्रचलित तीन तलाक की प्रथा को चुनौती देते हुए इसे असंवैधानिक बताया गया है.
सुप्रीम कोर्ट तीन तलाक से मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है या नहीं इस पर देखेगी.
संविधान पीठ मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक, बहुविवाह 'निकाह हलाला' जैसी प्रथाओं का संवैधानिक आधार पर विश्लेषण करेगी. सुप्रीम कोर्ट तीन तलाक के सभी पहलुओं पर विचार कर रही है.
सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि यह मसला बहुत गंभीर है और इसे टाला नहीं जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ किया है कि इस मामले में यूनिफार्म सिविल कोड पर चर्चा नहीं होगी.
ट्रिपल तालाक मामला महत्वपूर्ण क्यों है?
इस मामले में सुनवाई और भी महत्वपूर्ण हो गयी है क्योंकि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अप्रैल 2017 के अंतिम सप्ताह में ही अपने एक फैसले में तीन तलाक की प्रथा को एकतरफा और कानून की दृष्टि से खराब बताया था.
हाई कोर्ट ने अकील जमील की याचिका खारिज करते हुये यह फैसला सुनाया था. अकील की पत्नी ने उसके विरुद्ध आपराधिक शिकायत दायर करके आरोप लगया है कि वह दहेज की खातिर उसे यातना देता था और जब उसकी मांग पूरी नहीं हुयी तो उसने उसे तीन तलाक दे दिया.
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