भारत की पहली समर्पित अंतरिक्ष वेधशाला एस्ट्रोसैट ने हाल ही में छह अरब साल पुराने छोटे वैम्पायर तारे द्वारा एक बडे़ तारे का शिकार करने की प्रक्रिया को कैमरे में कैद किया है.
वैज्ञानिकों का कहना है कि छोटा तारा जिसे ब्लू स्ट्रैगलर भी कहा जाता है, वह अपने साथी तारे के द्रव्यमान तथा उसकी उर्जा को सोख लेता है.
भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान में प्रोफेसर अन्नपूर्णी सुब्रमण्यम ने कहा की सबसे लोकप्रिय बात यह है कि ये बाइनरी प्रणालियां हैं जिनमंन एक छोटा तारा बड़े साथी तारे के द्रव्यमान को सोखकर बड़ा ब्लू स्ट्रैगलर बन जाता है और इसलिए इसे वैम्पायर तारा भी कहते हैं.
उन्होंने कहा की छोटा तारा पहले से अधिक बड़ा, गर्म तथा नीला बन जाता है जिससे वह कम आयु का प्रतीत होता है.
हालांकि ऐसा नहीं है कि ऐसी घटना के बारे में पहली बार सुना गया हो लेकिन टेलीस्कोप के जरिए पूरी प्रक्रिया ऐसी जानकारी मुहैया कराएगी जो ब्लू स्टैगलर तारों के बनने के अध्ययन में वैज्ञानिकों की मदद करेगी. यह एस्ट्रोसैट पर टेलीस्कोप की क्षमताओं को रेखांकित करता है.
समर्पित अंतरिक्ष वेधशाला उपग्रह एस्ट्रोसैट का प्रक्षेपण सिंतबर 2015 में किया गया था. इस अध्ययन को इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर ऑफ एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स, एएआई, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर), भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) एवं कनाडियन स्पेस एजेंसी (सीएसए) के वैज्ञानिकों के दल ने एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लेटर्स में हाल में प्रकाशित किया है.
वैज्ञानिक अब उच्च रेजोल्यूशन वाली स्पैक्ट्रोस्कोपी के द्वारा ब्लू स्टैगलर की रासायनिक संरचना को समझ रहे हैं जिससे इन विशेष आकाशीय पिंडों के विकास के बारे में और जानकारी मिल पाएगी.
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