श्रीलंका इस समय बड़े आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. श्रीलंका सरकार ने बढ़ती खाद्य कीमतों, मुद्रा में गिरावट और तेजी से घटते विदेशी मुद्रा भंडार के बीच पिछले सप्ताह आर्थिक आपातकाल की घोषणा की. श्रीलंका इन दिनों एक कठिन आर्थिक संकट के दौर से जूझ रहा है. देश की मुद्रा के मूल्य में भारी गिरावट आ गई है, जिसके कारण खाद्य कीमतों में भारी तेजी आ गई है.
श्रीलंका ने हाल ही में खाद्य संकट को लेकर आपातकाल का घोषणा किया है, क्योंकि प्राइवेट बैंकों के पास आयात के लिए विदेशी मुद्रा की कमी है. राष्ट्रपति राजपक्षे ने हाल ही में चावल और चीनी सहित आवश्यक वस्तुओं की जमाखोरी को रोकने के लिए सार्वजनिक सुरक्षा अध्यादेश के तहत आपातकाल की स्थिति घोषित कर दी.
विदेशी मुद्रा की कमी
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बुनियादी ज़रूरत की वस्तुएं अचानक से बाज़ार से गायब होने लगी हैं. श्रीलंका की करेंसी भी रुपया कहलाती है. डॉलर के मुकाबले इसका मूल्य काफी नीचे गिर गया है. श्रीलंका ने खाद्य संकट को लेकर आपातकाल का घोषणा किया है, क्योंकि प्राइवेट बैंकों के पास आयात के लिए विदेशी मुद्रा की कमी है.
उपभोक्ता वस्तुओं की आपूर्ति
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, राजपक्षे ने सेना के एक शीर्ष अधिकारी को धान, चावल, चीनी और अन्य उपभोक्ता वस्तुओं की आपूर्ति के समन्वय के लिए आवश्यक सेवाओं के आयुक्त जनरल के रूप में नियुक्त किया है.
कीमतों में तेज वृद्धि
आपातकाल का ऐलान चीनी, चावल, प्याज और आलू की कीमतों में तेज वृद्धि के बाद उठाया गया है, जबकि दूध पाउडर, मिट्टी का तेल और रसोई गैस की कमी के कारण दुकानों के बाहर लंबी कतारें लगी हुई हैं. श्रीलंका सरकार ने खाद्य पदार्थों की जमाखोरी रोकने के लिए भारी जुर्माने का प्रावधान किया है.
कोरोना महामारी एक बड़ी कारण
असल में, श्रीलंका में 2020 में कोरोना महामारी के कारण अर्थव्यवस्था में रिकॉर्ड 3.6 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई. सरकार ने पिछले साल मार्च में विदेशी मुद्रा को बचाने के लिए आवश्यक मसाला, खाद्य तेल और हल्दी सहित वाहनों और अन्य वस्तुओं के आयात पर रोक लगा दी. बैंक के आंकड़े बताते हैं कि श्रीलंका का विदेशी भंडार जुलाई के अंत में गिरकर 2.8 अरब डॉलर तक पहुंच गया, जो नवंबर 2019 में 7.5 अरब डॉलर था.
श्रीलंका की आर्थिक समस्याएं आंशिक रूप से कोविड-19 संकट के कारण हैं, जिसने पर्यटन को प्रभावित किया, जो विदेशी मुद्रा आय के प्राथमिक स्रोतों में से एक है. इसके बढ़ते विदेशी ऋण संकट को कई अर्थशास्त्रियों द्वारा स्थिति के मुख्य अंतर्निहित कारणों में से एक के रूप में देखा जाता है.
आर्थिक आपातकाल क्या होता है?
किसी भी देश के राष्ट्रपति की तरफ से धारा 360 के तहत आर्थिक आपातकाल की घोषणा तब की जाती है, जब उन्हें ऐसा लगता है कि देश में भारी आर्थिक संकट पैदा हो चुका है. यह सख्त कदम तब उठाया जाता है जब लगता है कि इस आर्थिक संकट के चलते देश के वित्तीय स्थायित्व को खतरा हो सकता है. कोई भी सरकार इतना सख्त कदम उठाने को तब मजबूर हो जाती है जब आर्थिक स्थिति बदतर होने की वजह से सरकार दिवालिया होने के कगार पर पहुंच जाती है.
आपातकाल दो तरह के होते हैं. पहला आर्थिक आपातकाल और दूसरा राष्ट्रीय आपतकाल. राष्ट्रीय आपतकाल तब लगाया जाता है जब युद्ध के हालात हो जाते हैं या फिर विद्रोह बहुत अधिक बढ़ जाता है. इंदिरा गांधी ने साल 1975 में राष्ट्रीय आपातकाल लगया था. यदि किसी देश में आर्थिक आपातकाल लागू हो जाता है तो सभी कर्मचारियों की सैलरी और भत्तों में कटौती की जाने लगती है. यह कटौती कितनी होगी, ये भी सरकार ही तय करती है.
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