53 वर्ष पुरानी परंपरा असंवैधानिक, सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश का अधिकार: सुप्रीम कोर्ट

सबरीमाला मंदिर पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि शारीरिक रचना के आधार पर मंदिर में प्रवेश पर प्रतिबन्ध असंवैधानिक है. अब से प्रत्येक महिला को मंदिर में प्रवेश का अधिकार मिलेगा.

Sep 28, 2018, 11:25 IST
Women have the right to enter pray in Sabarimala temple
Women have the right to enter pray in Sabarimala temple

सबरीमाला मंदिर पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितंबर 2018 को कहा है कि शारीरिक रचना के आधार पर मंदिर में प्रवेश पर प्रतिबन्ध असंवैधानिक है. सबरीमाला मंदिर पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि शारीरिक रचना के आधार पर मंदिर में प्रवेश पर प्रतिबन्ध असंवैधानिक है. अब से प्रत्येक महिला को मंदिर में प्रवेश का अधिकार मिलेगा.

पीठ की अध्यक्षता चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) दीपक मिश्रा ने की. उनके अलावा इसमें जस्टिस आरएफ नरीमन, एएम खानवल्कर, डीवाई चंद्रचूड़ और इंदू मल्होत्रा शामिल रहे हैं. पीठ ने इससे पहले दो अगस्त को इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि लिंग के आधार पर श्रद्धालुओं के साथ पूजा के अधिकार में भेदभाव नहीं किया जा सकता है.

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश मामले पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, पुरुष की प्रधानता वाले नियम बदलने चाहिए। दोतरफा नजरिए से महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचती है. शीर्ष अदालत का फैसला इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन और अन्य की याचिकाओं पर आया है.

 

पहले दी गई टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश करने और प्रार्थना करने के मामले की सुनवाई करते हुए 18 जुलाई 2018 को यह टिप्पणी दी कि सबरीमाला मंदिर कोई निजी संपत्ति नहीं है, यह एक सावर्जनिक संपत्ति है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मंदिर में यदि पुरुषों को प्रवेश करने और पूजा करने का हक है तो समान रूप से महिलाओं को भी वही अधिकार प्राप्त हैं.

इस मामले की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा कि यदि पुरुष सबरीमाला मंदिर में अंदर जा सकते हैं तो महिलाएं भी वहां जा सकती हैं.

 

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं पर प्रतिबन्ध क्यों?

हिंदू मान्यता में महिलाओं को पीरियड्स के दौरान अपवित्र माना जाता है,  जिसके अक्रन मंदिर में उनके प्रवेश पर रोक थी. वर्ष 2006 में लैंगिक समानता को आधार बनाकर कई महिला वकीलों ने मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिका डाली थी. उसके बाद इस संबंध में कई और याचिकाएं डाली गईं, जिन पर कोर्ट का फैसला आया है. पांच महिला वकीलों के समूह ने केरल हिंदू प्लेसेस ऑफ पब्लिक वर्शिप रूल्स, 1965 के नियम 3(बी) को चुनौती दी थी. इस नियम में महिलाओं को पीरियड्स वाले आयुवर्ग के दौरान मंदिर में प्रवेश से रोके जाने का प्रावधान है. ऐसे में महिला वकीलों ने केरल हाईकोर्ट के बाद न्याय के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहीं वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह कहना है कि यह प्रतिबंध संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 17 के खिलाफ है. उनके अनुसार यह  परंपरा महिलाओं संग किया जाने वाला भेदभाव है.

 

सुप्रीम कोर्ट का रुख क्या था?

•    सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि जो जगह सार्वजनिक है वहां वो किसी शख्स को जाने से नहीं रोक सकते हैं. संविधान में पुरुषों और महिलाओं में बराबरी की बात लिखी गई है.

•    संवैधानिक पीठ ने कहा कि मंदिर में प्रवेश का अधिकार किसी कानून पर निर्भर नहीं है. यह संवैधानिक अधिकार है. यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 में निहित है.

•    इसका यह अर्थ है कि एक महिला के नाते आपका प्रार्थना करने का अधिकार किसी विधान के अधीन नहीं है. ये संवैधानिक अधिकार है.

•    इस संवैधानिक पीठ में जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा भी शामिल हैं.

•    जस्टिस नरीमन ने कहा कि यह पाबंदी मनमानी है जो 10 वर्ष तक की बच्ची और 53 वर्ष से ऊपर की महिला को प्रवेश से नहीं रोक सकती.

पृष्ठभूमि

इस मामले में 7 नवंबर 2016 को केरल सरकार ने न्यायालय को सूचित किया था कि वह ऐतिहासिक सबरीमाला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश के पक्ष में है. शुरुआत में राज्य की एलडीएफ सरकार ने 2007 में प्रगतिशील रुख अपनाते हुए मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की हिमायत की थी, जिसे कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूडीएफ सरकार ने बदल दिया था. यूडीएफ सरकार का कहना था कि वह 10 से 50 आयु वर्ग की महिलाओं का प्रवेश वर्जित करने के पक्ष में है क्योंकि यह परपंरा अति प्राचीन काल से चली आ रही है.

Gorky Bakshi is a content writer with 9 years of experience in education in digital and print media. He is a post-graduate in Mass Communication
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