अमेरिकी नेशनल साइंस फाउंडेशन के नेतृत्व में कई देशों के वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका यानी दक्षिणी ध्रुव में विश्व की पहली आइसक्यूब न्यूट्रिनो वेधशाला (Ice Cube Neutrino Observatory) बनाई. आइसक्यूब न्यूट्रिनो वेधशाला एक ऐसा भीमकाय टेलीस्कोप है जिसे न्यूट्रिनो नाम के सबएटॉमिक अणुओं को पहचानने के लिए डिजाइन किया गया है. न्यूट्रिनो प्रकाश की गति से धरती से होते हुए गुजरते रहते हैं. वैज्ञानिकों को बेहद उच्च ऊर्जा वाले न्यूट्रिनो ब्रह्मांड के सबसे महत्वपूर्ण सवालों के समाधान उपलब्ध करा सकते हैं.
बर्फ वाली जगह पर आइसक्यूब न्यूट्रिनो वेधशाला बनाने की जरूरत पड़ी क्योंकि अनेकों हजारों करोड़ न्यूट्रिनो बर्फ से हमेशा पास करते रहते हैं. पर दिखाई केवल कुछ सैकड़े ही देते हैं. परन्तु जब न्यूट्रिनो की टक्कर बर्फ के ऑक्सीजन अणु के केंद्र से होती है, तो नाभिकीय टक्कर के कारण न्यूट्रिनो अधिक ऊर्जा प्राप्त कर म्युओंस में बदल जाता है. ये म्युओंस बर्फ में प्रकाश की गति से तेज चलते हैं, जिससे नीले रंग की चेरेन्कोव विकिरण निकलती है. इस विकिरण को आइसक्यूब न्यूट्रिनो के फोटोडिटेक्टर देख पाने में सक्षम है.
आइसक्यूब न्यूट्रिनो: इस विशालकाय टेलीस्कोप की औसत गहराई 8,000 फुट है. इस परियोजना में अमेरिका, जर्मनी, बेल्जियम, स्वीडन, कनाडा, जापान, न्यूजीलैंड, स्विटजरलैंड, ब्रिटेन और बारबाडोस के वैज्ञानिक शामिल हैं. इस पूरी परियोजना पर 279 मिलियन डॉलर (करीब 12.5 अरब रुपये) का खर्च आया है. इनमें से नेशनल साइंस फाउंडेशन ने 242 मिलियन डॉलर (करीब 10.8 अरब रुपये) का योगदान दिया है. इस परियोजना निर्माण का कार्य वर्ष 2004 से चल रहा था. 20 दिसंबर 2010 को आइसक्यूब न्यूट्रिनो वेधशाला बन कर तैयार हुई.
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