International/World Current Affairs 2012. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) ने ग्लोबल वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट 2012 जारी की. इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2006-07 से आर्थिक संकट की मार झेल रहे ग्लोबल वित्तीय तंत्र की हालत अब भी नाजुक है. नीति निर्माताओं की तरफ से आ रहे संकेत साफ और सकारात्मक हैं, लेकिन वित्तीय तंत्र से खतरा टला नहीं है. रिपोर्ट के अनुसार भारतीय बैंक इस संकट से बहुत हद तक अछूते रहे हैं. इसका कारण यह है कि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय तंत्र में इनकी मौजूदगी बहुत कम है.
आईएमएफ की रिपोर्ट के अनुसार भारत और मलेशिया की यदि उनके समकक्ष दूसरे समूहों से तुलना की जाये तो विकासशील एशिया और ब्रिक समूह को छोड़कर लगभग सभी संकेतकों के लिहाज से वे विदेशी बैंकों से अलग दिखाई देते हैं.
रिपोर्ट के अनुसार ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, भारत और मलेशिया का दूसरे देशों की तुलना में अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग के साथ कम जुड़ाव है और इन देशों की बैंकिंग प्रणाली वैश्विक वित्तीय संकट के बुरे प्रभाव से भी अछूती रही है. भारत और मलेशिया दोनों में ही विदेशी बैंकों की उपस्थिति कम है और उनके बैंकों में विदेशी आस्तियों का स्तर भी काफी कम है. दूसरे के मुकाबले मलेशिया की विदेशी देनदारियों पर निर्भरता कम है जबकि वर्ष 2007 में भारत ब्रिक समूह के नजदीक रहा.
रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्तीय स्थायित्व के लिये विदेशी बैंकों की भागीदारी के बजाय बैंकों का वित्त पोषण ढांचा ज्यादा महत्त्वपूर्ण होता है. रिपोर्ट में दी गई एक सूची के अनुसार भारत की बैंकिंग प्रणाली का 10 प्रतिशत से भी कम का वैश्वीकरण हुआ है. भारत और मलेशिया साफ तौर पर विदेशी बैंकों के प्रवेश के मामले में सख्त हैं, हालांकि दोनों ही अर्थव्यवस्थाओं ने इस संबंध में नीतियों में कुछ बदलाव किया है.
रिपोर्ट के अनुसार इन देशों में बैंकिंग इकाई कितनी शाखायें खोल सकती है उसकी संख्या सीमित रखी गई है. किसी घरेलू बैंक में विदेशी भागीदारी 30 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती. भारत में विदेशी बैंकों का प्रवेश शाखाओं के जरिये है, जिनकी मंजूरी पर कड़ा नियंत्रण है.
आईएमएफ रिपोर्ट के अनुसार भारत में पहले से काम कर रहे विदेशी बैंकों को घरेलू बैंकों में 5 प्रतिशत से अधिक शेयर लेने की अनुमति नहीं है. अन्य विदेशी बैंकों को किसी भारतीय बैंक में 10 प्रतिशत से अधिक शेयर खरीदने के लिये मंजूरी लेनी होगी.
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