अशरफ गनी अहमदजई ने 29 सितंबर 2014 को अफगानिस्तान के राष्ट्रपति के पद की शपथ ली. राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में अफगानिस्तान के प्रधान न्यायाधीश ने उन्हें पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई. अशरफ गनी अहमदजई ने वर्ष 2001 में अमेरिकी हमले के बाद से सत्तारूढ़ राष्ट्रपति हामिद करजई का स्थान लिया.
यह वर्ष 2001 में तालिबान के सत्ता से बेदखल होने के बाद देश में पहली बार लोकतांत्रिक तरीके से सत्ता का हस्तांतरण है.
अशरफ गनी अहमदजई ने शपथ लेने के बाद अब्दुल्लाह का परिचय अपने मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में कराया. मुख्य कार्यकारी अधिकारी का पद प्रधानमंत्री पद के बराबर होगा. करजई के राष्ट्रपति रहते हुए यह पद सरकार में नहीं था.
अशरफ गनी और अब्दुल्लाह के शपथ ग्रहण के साथ अफगानिस्तान में राष्ट्रपति चुनावों के बाद तीन महीने से चला आ रहा राजनीतिक संकट समाप्त हो गया है.
अफगानिस्तान के निर्वाचन आयोग ने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार डॉ. अशरफ गनी को 21 सितंबर 2014 को राष्ट्रपति निर्वाचित घोषित किया था. इससे पहले निवर्तमान राष्ट्रपति हामिद करजई की उपस्थित में डॉ. अशरफ गनी को अफगानिस्तान का राष्ट्रपति बनाने के लिए उन्होंने डॉ. अब्दुल्ला के साथ ‘राष्ट्रीय एकता सरकार’ समझौते पर हस्ताक्षर किया गया. अफगानिस्तान के निर्वाचन आयोग ने इस समझौते के बाद डॉ. अशरफ गनी के विजयी होने की घोषणा की थी.
‘राष्ट्रीय एकता सरकार’ समझौते के तहत डॉ. अब्दुल्ला को इस सरकार के नवसृजित पद ‘मुख्य कार्यकारी अधिकारी’ (सीईओ) चुना गया. ‘मुख्य कार्यकारी अधिकारी’ (सीईओ) का पद प्रधानमंत्री के समकक्ष है.
पूर्व तालिबान विरोधी लड़ाके एवं पूर्व विदेश मंत्री डॉ. अब्दुल्ला के पास ताजिक समुदाय और अन्य उत्तर जातीय समूहों का समर्थन है जबकि विश्व बैंक के पूर्व अर्थशास्त्री डॉ. अशरफ गनी के पास दक्षिण और पूर्व के पश्तून कबाइलियों का समर्थन है.
अफगानिस्तान के संविधान के तहत देश के राष्ट्रपति के पास पूरा नियंत्रण होगा, लेकिन देश की सुरक्षा और आर्थिक हालात लगातार बिगड़ने की वजह से नए सरकारी तंत्र को एक कठिन परीक्षा से गुजरना होगा.
विदित हो कि अफगानिस्तान में अप्रैल 2014 में राष्ट्रपति चुनाव हुआ था जिसमें आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार डॉ. अब्दुल्ला को 45 प्रतिशत मत मिले थे लेकिन उनका दावा था कि उन्हें 50 प्रतिशत से अधिक मत मिले हैं. उसके बाद जून 2014 में हुये दूसरे चरण के मतदान में भी उन्होंने डॉ. गनी को पराजित करने का दावा किया था लेकिन आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक डॉ. गनी 55 प्रतिशत मतों के साथ विजयी हुये. डॉ. अब्दुल्ला ने जून 2014 में हुये दूसरे चरण के मतदान में धांधली का आरोप लगाया था जिसके बाद राष्ट्रपति पद के लिये दावेदारी को लेकर खासा गतिरोध पैदा हो गया था. इसके बाद अमेरिकी विदेश मंत्री जान कैरी ने जुलाई 2014 में अपनी अफगानिस्तान यात्रा के दौरान दोनों नेताओं को शक्ति के बंटवारे के लिये समझौता करने पर सैद्धांतिक तौर पर राजी कर लिया था. अमेरिकी व्हाइट हाउस ने एक बयान जारी करके दोनों नेताओं के इस कदम की सराहना करते हुये कहा कि इस समझौते से अफगानिस्तान के राजनीतिक संकट को दूर करने में मदद मिलेगी. यह समझौता अफगानिस्तान में स्थिरता लाने और शांति स्थापित करने में सहायक साबित होगा.
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