इंटरनेशनल ह्वीट जीनोम सीक्वेंसिंग कंसोर्टियम (आईडब्ल्यूजीएससी) के वैज्ञानिकों ने 17 जुलाई 2014 को रोटी वाले गेहूं की जेनेटिक ब्लूप्रिंट पेश की. आईडब्ल्यूजीएससी आईडब्ल्यूजीएससी के वैज्ञानिकों जिसमें भारत के भी तीन अनुसंधान संस्थान भी भागीदार है, ने गेहूं के जीनोम का पहला ड्राफ्ट सिक्वेंस प्रकाशित किया है.
गेहूं के जीन सिक्वेंसिंग का महत्व
• गेहूं के जीनोम सिक्वेंस को पेश करने के बाद गेहूं की उत्पादकता बढ़ाने और जलवायु परिवर्तन में प्रतिरोध क्षमता बढ़ाना संभव हो सकेगा.
• इससे अपेक्षाकृत बहुत कम समय में कृषिआर्थिक महत्व के लिए जीनों की मैपिंग और क्लोनिंग की सुविधा मिलेगी और वह भी सस्ते दाम पर क्योंकि सिक्वेंसिंग में कई जीन मार्करों ने इसे मान्यता दी है.
• गेहूं के जीनोम की डिकोडिंग से जीन के कार्यों को समझने में मदद मिलेगी.
• जलवायु परिवर्तन एवं बढ़ती आबादी के लिए खाद्य सुरक्षा एवं स्थायी कृषि के विकास को सुनिश्चित करेगा.
इस काम को करने के लिए 2005 में सबसे पहला प्रयास किया गया था जब अंतरराष्ट्रीय ह्वीट जीनोम सिक्वेंसिंग कंसोर्टिंयम की स्थापना की गई थी. इस कंसोर्टियम में भारत समेत कुल पंद्रह देश हैं.
भारत का योगदान
जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) के वित्तीय सहयोग के साथ तीन प्रमुख संस्थान– पंजाव कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू), लुधियाना, राष्ट्रीय पादप जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान केंद्र, नई दिल्ली और दिल्ली विश्वविद्यालय का साउथ कैंपस, को 2A क्रोमोजोम (गुणसूत्र) के डिकोडिंग की जिम्मेदारी दी गई थी. 2A क्रोमोजोम में करीब 900 मिलियन आकार के बेस होते हैं और इसका आकार मानव जीनोम का एक तिहाई और चावल के जीनोम का 2.5 गुना होता है.
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