जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के शोधार्थियों ने महबूब हुसैन के नेतृत्व में स्नेपिन (Snapin) नामक एक खास प्रोटीन की खोज की जो तंत्रिका कोशिका और अग्नाशय की बीटा कोशिकाओं में पाया गया. इंसुलिन स्राव पर स्नेपिन प्रोटीन के प्रभाव को जांचने के लिए शोधार्थियों ने एक चूहे के अग्नाशय में स्नेपिन प्रोटीन डाल दिए. जबकि दूसरे चूहे को ऐसे ही रहने दिया. स्नेपिन प्रोटीन डाले गए चूहे के अग्नाशय को निकाल कर उसे कृत्रिम तरीके से विकसित किया गया. कुछ दिनों के बाद यह पाया गया कि सामान्य चूहे में प्रति कोशिका एक ग्राम का करीब 2.8 अरबवां हिस्सा इंसुलिन स्रावित हुआ जबकि स्नेपिन सक्रिय चूहे की कोशिकाओं से 7.3 अरबवां हिस्सा इंसुलिन स्रावित हुआ. यह सामान्य से करीब तीन गुना ज्यादा स्राव था.
जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के मुख्य शोधकर्ता महबूब हुसैन ने बताया कि स्नेपिन (Snapin) नामक खास प्रोटीन मधुमेह के इलाज में मॉलीक्यूलर स्विच का काम कर सकती है. इस शोध से टाइप-2 मुधमेह के इलाज का रास्ता सरल हो गया है.मुख्य शोधकर्ता महबूब हुसैन के टीम द्वारा किया गया यह शोध सेल मेटाबॉलिज्म जर्नल में मार्च 2011 के दूसरे सप्ताह में प्रकाशित हुआ.
ज्ञातव्य हो कि टाइप-2 मधुमेह के रोगी में आइलेट ऑफ लैंगरहेंस (islet of Langerhans of the pancreas: अग्नाशय का वह हिस्सा जिसमें हार्मोन बनाने वाली कोशिकाएं रहती हैं) में इंसुलिन बनाने वाली बीटा कोशिकाएं असफल हो जाती हैं. चूंकि भोजन ग्रहण करने के बाद, अग्नाशय इंसुलिन का उत्पादन करता है. यह रक्त में मौजूद ग्लूकोज को शरीर की हर कोशिका तक पहुंचाता है, जिससे शरीर को ऊर्जा मिलती है. टाइप-2 मधुमेह से पीड़ित रोगियों में या तो पर्याप्त इंसुलिन स्रावित नहीं होता है या इनकी कोशिकाएं इंसुलिन के स्राव का प्रतिरोध करती हैं.
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