उत्तर प्रदेश सरकार ने 21 जून 2011 को बलात्कार और महिलाओं से छेड़छाड़ की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC: Code of Criminal Procedure, सीआरपीसी) और भारतीय दंड संहिता (IPC: Indian Penal Code, आइपीसी) की संबंधित धाराओं में संशोधन का फैसला किया गया. संशोधित फैसले में बलात्कार के आरोपी को तब तक जमानत नहीं मिलेगी, जब तक वह खुद को निर्दोष साबित न कर दे, यानी महिलाओं के शील भंग से जुड़े सभी अपराध गैर जमानती घोषित किए गए. साथ ही बलात्कार से जुड़े मुकदमों का फैसला सिर्फ छह माह में करने का निर्णय लिया गया.
उत्तर प्रदेश सरकार ने दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC: Code of Criminal Procedure, सीआरपीसी) और भारतीय दंड संहिता (IPC: Indian Penal Code, आइपीसी) में संशोधन का जो निर्णय किया है, उसके तहत सीआरपीसी की धारा 235 में उपधारा एक जोड़ी गई है, जिसमें यह प्रावधान किया गया कि बलात्कार के सभी मुकदमे का फैसला छह माह के अंदर हो जाए. साथ ही महिलाओं के शील भंग के अपराध से संबंधित आइपीसी की धारा 354 में संशोधन करते हुए, शील भंग के सभी कृत्यों को गैर जमानती अपराध घोषित कर दिया गया. इसी तरह बलात्कार के आरोपी की जमानत आसानी से न हो, इसके लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 437 और 439 में संशोधन किया गया.
उत्तर प्रदेश सरकार ने इससे संबंधित अध्यादेश राज्यपाल को भेज दिया. ज्ञातव्य हो कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC: Code of Criminal Procedure, सीआरपीसी) और भारतीय दंड संहिता (IPC: Indian Penal Code, आइपीसी) में बदलाव के लिए राष्ट्रपति की मंजूरी जरूरी होती है. स्पष्ट है कि राज्यपाल इस अध्यादेश को राष्ट्रपति को संदर्भित करेंगे. राष्ट्रपति से सहमति मिलने के बाद ही ये नए प्रावधान राज्य में लागू हो सकता है.
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