भारतीय खाद्य संरक्षा मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने 23 जुलाई 2015 को डिब्बाबंद पूरक आहारों पर गलत लेबल लगा कर उन्हें दवा के रूप में बेचे जाने पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव पेश किया है.
वर्तमान में भारत में इस तरह के उत्पादों की निगरानी के लिए किसी तरह के नियामकीय दिशानिर्देश नहीं हैं.
इन नियमों की आधिकारिक अधिसूचना से नकली उत्पादों को रोकने में मदद मिलेगी.
इसके अतिरिक्त प्राधिकरण ने आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी और अन्य पारम्परिक चिकित्सा प्रणालियों पर आधारित उत्पादों के लिए नए मानदंडों की घोषणा भी की है.
प्रस्ताव के अंतर्गत निम्न बिन्दुओं को शामिल किया गया है
- प्रस्ताव के अनुसार अब कम्पनियां यह दावा नहीं कर सकतीं कि उनके पोषाहार और पूरक आहार इलाज के प्रयोजन से तैयार किए गए हैं.
- प्राधिकरण ने कहा कि खाद्य या स्वास्थ्य सामग्रियों के पैकेट पर यह साफ-साफ लिखा होना चाहिए कि यह इलाज के लिए नहीं है.
- यह प्रस्ताव भी किया गया है कि आयुर्वेद, सिद्धा और यूनानी उत्पादों में गाय, भैंस और ऊंट के दूध, घी, दही, मक्खन, और चांदी की अधिकतम मात्रा निर्धारित की जाए.
- किसी भी हार्मोन या स्टेरॉयड या नशीली सामग्री को इन खाद्य पदार्थों के संघटक के रूप में नहीं शामिल किया जाएगा.
- उत्पाद पर लगाए गए लेबल में उत्पाद का उद्देश्य और लक्षित उपभोक्ता समूह स्पष्ट तौर पर लिखा होना चाहिए.
नियामक ने पहली बार आयुर्वेद और यूनानी पद्धति के कुछ उत्पादों के लिए सुरक्षा नियमों का मसौदा जारी किया है.
खाद्य नियामक इस मसौदे पर सभी पक्षों की राय लेने के बाद सुरक्षा के मानदंडों को अंतिम रूप देगा.
विदित हो इससे पहले एसोचैम द्वारा 22 जुलाई 2015 को जारी किए गए एक पत्र के में यह सुझाव दिया गया था की भारतीय खाद्य संरक्षा मानक प्राधिकरण को पूरक आहार, पोषक तत्व वाले खाद्य एवं पथ्य आहार के लिए सुरक्षा नियमों बनाने चाहिए. ध्यातव्य हो कि अगले पांच वर्षों में 12.2 अरब अमरीकी डॉलर की क्षमता रखने वाले पोषक तत्व खाद्य उत्पादों में 60 से 70 प्रतीशत नकली हैं अतः ऐसे अपंजीकृत और अस्वीकृत उत्पादों पर निगरानी रखना आवश्यक है.
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