अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय (The Court of Arbitration) ने निर्देश दिया कि उत्तरी कश्मीर में स्थित किशनगंगा पनबिजली परियोजना (Kishenganga Hydro-electric project, KHEP) के लिए किशनगंगा का जलमार्ग बदलने का भारत को अधिकार है. इसमें भारत ने सिन्धु जल समझौते के सभी प्रावधानों का पालन किया है. अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय ने पाकिस्तान की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें पाकिस्तान ने भारत पर किशनगंगा नदी के बहाव को मोड़ने और दोनों देशों के बीच हुई सिंधु जल संधि 1960 के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए इस परियोजना पर स्थगन की मांग की थी.
अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय ने यह निर्देश 18 फरवरी 2013 को दिया. यह निर्णय स्टेफन एम स्कीवेल(Stephen M. Schwebel) के अध्यक्षता में दिया गया. किशनगंगा पनबिजली परियोजना उत्तरी कश्मीर के बांदीपुरा के निकट गुरेज घाटी में स्थित है. 330 मेगावॉट की किशनगंगा पनबिजली परियोजना की लागत 3 हजार 6 सौ करोड़ रुपए है.
पाकिस्तान ने किशनगंगा पन बिजली परियोजना के निर्माण पर आपत्ति उठाते हुए पंचाट के न्यायालय में 17 मई 2010 को याचिका दायर की थी.
विदित हो कि भारत कश्मीर में किशनगंगा नदी पर पनबिजली परियोजना का निर्माण करवा रहा है, किशनगंगा नदी झेलम की एक सहायक नदी है. पाकिस्तान में प्रवेश करने के बाद किशनगंगा नदी नीलम के नाम से जानी जाती है.
सिंधु जल संधि 1960 के मुख्य बिंदु:
• सिंधु नदी प्रणाली में तीन पूर्वी नदियां (रावी, ब्यास और सतलुज और उनकी सहायक नदियां) और तीन पश्चिमी नदियां (सिंधु, झेलम और चिनाब और उनकी सहायक नदियां) शामिल हैं.
• सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर भारत और पाकिस्तान के मध्य वर्ष 1960 में किया गया था. जो 1 अप्रैल 1960 को लागू किया गया.
• समझौते के तहत भारत पश्चिमी नदियों के पानी का उपयोग निम्नलिखित कार्यों के लिए कर सकता है. शेष पानी को पाकिस्तान के लिए छोड़ देगा.
a) घरेलू उपयोग हेतु
b) विशेषीकृत कृषि कार्य हेतु
c) पनबिजली परियोजना हेतु
किशनगंगा पनबिजली परियोजना: 330 मेगावाट की किशनगंगा पनबिजली परियोजना (Kishanganga hydro-electric power project) नेशनल पावर कारपोरेशन द्वारा किशनगंगा नदी पर बनाई जा रही है. इस परियोजना का कार्य वर्ष 1992 में प्रारम्भ किया गया था.
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