केंद्र में लोकपाल और राज्य स्तर पर लोकायुक्त संस्था की स्थापना के उद्देश्य से सरकार ने लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक 2011 लोकसभा में 22 दिसंबर 2011 पेश किया. दोनों संस्थाओं (लोकपाल और लोकायुक्त) को संवैधानिक दर्जा प्रदान करने हेतु संविधान में संशोधन के लिए सरकार ने एक अन्य विधेयक भी प्रस्तुत किया. सरकार ने पहले पेश किए गए लोकपाल विधेयक-2011 को वापस ले लिया क्योंकि इसमें महत्त्वपूर्ण बदलाव के लिए संसदीय समिति द्वारा सुझाए उपायों पर विचार करने के बाद तैयार नए लोकपाल एवं लोकायुक्त विधेयक 2011 को लोकसभा में प्रस्तुत करने का फैसला लिया गया. प्रस्तावित नए विधेयक की महत्त्वपूर्ण विशेषताएं निम्नलिखित हैं.
जवाबदेही बढ़ाने पर बल: केंद्र के लिए लोकपाल और राज्यों के लिए लोकायुक्त नामक नई संस्था की स्थापना. इन स्वायत्त और स्वतंत्र संस्थाओं के पास भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए भ्रष्टाचार से जुड़े कानून के तहत शिकायत के संदर्भ में, अधीक्षण और प्रारंभिक जांच के निर्देश का अधिकार होगा जिससे जांच की जा सके और अपराधों का अभियोजन किया जा सके.
यह विधेयक केंद्र और राज्य दोनों स्तर पर एक समान सतर्कता और भ्रष्टाचार विरोधी खाका उपलब्ध कराता है. विधेयक जांच को अभियोजन से अलग रखने को संस्थापित करता है. इससे हित संघर्ष दूर होगा साथ ही व्यावसायिकता और विशेषज्ञता में वृद्धि भी होगी.
संस्थान की संरचना: लोकपाल में एक अध्यक्ष और अधिकतम 08 सदस्य होंगे जिनमें से आधे न्यायिक क्षेत्र से जुड़े होंगे. लोकपाल के 50 प्रतिशत सदस्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछडा वर्गों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं के बीच से होंगे. प्रारंभिक जांच करने के लिए लोकपाल के पास एक पूछताछ शाखा और एक स्वतंत्र अभियोजन खंड होगा. लोकपाल के अधिकारियों में सचिव, अभियोजन निदेशक, पूछताछ निदेशक और अन्य अधिकारी शामिल होंगे.
चयन प्रक्रिया: लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों का चयन एक चयन समिति के द्वारा किया जाएगा जिसमें निम्नलिखित व्यक्ति शामिल होंगे.
• भारत के प्रधानमंत्री.
• लोकसभा अध्यक्ष
• लोकसभा में प्रतिपक्ष का नेता
• भारत के मुख्य न्यायधीश अथवा भारत के मुख्य न्यायधीश द्वारा नामित उच्चतम न्यायालय का मौजूदा न्यायधीश
• प्रतिष्ठित विधिवेत्ता जो भारत के राष्ट्रपति द्वारा नामित हो.
• चयन की प्रक्रिया में चयन समिति को मदद करने के लिए एक सर्च समिति होगी जिसके 50 प्रतिशत सदस्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछडा वर्गों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं के बीच से होंगे.
अधिकार क्षेत्र: लोकपाल को निम्नलिखित अधिकार प्रदान किए गए हैं.
• प्रधानमंत्री के खिलाफ किसी शिकायत के निपटारे में विशेष प्रक्रिया अपनाने की शर्त के साथ उन्हें लोकपाल के दायरे में रखा गया है लोकपाल प्रधानमंत्री के खिलाफ लगे उन आरोपो की जांच नहीं कर सकता जिनके संबंध देश की आंतरिक और वाह्य सुरक्षा, लोकादेश, परमाणु ऊर्जा और, अंतरिक्ष मुद्दे अंतरराष्ट्रीय संबंध से है.
• प्रधानमंत्री के खिलाफ प्राथमिक पूछताछ या जांच की शुरूआत करने का लोकपाल का कोई फैसला सिर्फ तीन चौथाई बहुमत वाली फुलबेंच ही करेगी. ऐसी प्रक्रिया बंद कमरे में होगी.
• लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में ग्रुप ए, बी, सी, डी के सभी सरकारी अधिकारी और कर्मचारी शामिल होंगे. यदि लोकपाल कोई शिकायत जांच के लिए सीवीसी के पास भेजता है, तो सीवीसी ग्रुप ए, बी के अधिकारियों से जुड़ी शिकायतों पर अपनी प्राथमिक जांच रिपोर्ट लोकपाल को भेजेगा, ताकि वह आगे फैसला ले सके. लेकिन ग्रुप सी और डी के मामले में सीवीसी ही सीवीसी कानून के तहत आगे की कार्रवाई करेगा, जिसे लोकपाल को समीक्षा के लिए रिपोर्ट किया जाएगा.
• कोई भी संस्था जो विदेशी अंशदान नियमन कानून-एफसीआरए के तहत एक वर्ष में 1000000 रुपए से अधिक का दान प्राप्त करती है, तो वह लोकपाल के दायरे में आएगी.
• लोकपाल स्वयं कोई जांच शुरू नहीं कर करेगा.
विधेयक की अन्य महत्त्वपूर्ण बातें: विधेयक की अन्य महत्त्वपूर्ण बातें निम्नलिखित है.
• लोकपाल के निर्देश या उसकी स्वीकृति पर कोई जांच शुरू करने के लिए कोई पूर्व अनुमति लेना आवश्यक नहीं है.
• सीबीआई के निदेशक के चयन के लिए एक उच्च अधिकार प्राप्त समिति सिफारिश करेगी. इस समिति में प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश या उनके द्वारा नामित न्यायाधीश शामिल होंगे.
• अदालती कार्यवाही लंबित रहने की स्थिति में भी भ्रष्ट तरीकों से प्राप्त की गई संपत्ति को जब्त करने का प्रावधान है.
• सरकारी सेवाओं के प्रावधानों से जुड़े सरकारी अधिकारियों के सभी फैसलों और भ्रष्टाचार के निष्कर्षों से जुड़ी शिकायतों के निपटारे के लिए लोकपाल से आखिरी आपील की जा सकेगी.
• लोकपाल को सीबीआई सहित किसी भी जांच एजेंसी को भेजे गए मामले का अधीक्षण करने और निर्देश देने का अधिकार होगा.
• विधेयक में निम्न बातों के लिए स्पष्ट समय सीमा निर्धारित की गई है.
• प्रारंभिक जांच - 3 महीने और जरूरत पड़ने पर अन्य 3 महीनों की बढ़ोत्तरी.
• जांच- 6 महीने, और जरूरत पड़ने पर अन्य 6 महीने का विस्तार.
• मुकदमे की सुनवाई- 01 वर्ष और जरूरत पड़ने पर अन्य 01 वर्ष का विस्तार.
• विधेयक में भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत सजा बढ़ाने का भी प्रस्ताव है.
(क) अधिकतम सजा 07 वर्ष से 10 वर्ष और (ख) न्यूनतम सज़ा 06 माह से 02 वर्ष तक.
• विधेयक में सरकारी कर्मचारियों द्वारा संपत्ति की घोषणा करने के लिए काननूी सहायता का प्रस्ताव.
• विधेयक में निम्नलिखित कानूनों में आवश्यक संशोधनों का भी प्रावधान किया गया है. ये है. जांच आयोग कानून- 1952, भ्रष्टाचार निरोधक कानून- 1988, आपराधिक प्रक्रिया संहिता-1973, केंद्रीय सतर्कता आयोग कानून-2003 और दिल्ली विशेष पुलिस संस्थापना कानून-1946
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