केंद्र सरकार ने 2 सितंबर 2015 को 100 मीटर के स्तर पर पवन संसाधन एटलस का शुभारंभ किया. यह एटलस विधि निर्माताओं तथा राज्य सरकारों को टैरिफ निर्धारण, पारेषण, ग्रेड आवृत्ति सम्बन्धी दिक्कतों से निपटने में सहायता करेगी.
इससे निवेशकों को भारत में निवेश करने से पहले बेहतर जानकारी भी प्राप्त हो सकेगी. भारतीय पवन संसाधन एटलस एक महत्वपूर्ण जीआईएस (भौगोलिक सूचना प्रणाली) साधन है जिससे क्षेत्रीय एवं स्थानीय पवन उर्जा की स्थिति का पता लगाया जा सकता है.
इसमें पवन की वार्षिक गति की गणना, पवन ऊर्जा घनत्व और क्षमता व उपयोग को 2 मेगावाट टरबाइन द्वारा 100 मीटर की ऊंचाई पर नापा गया है. एटलस में लेयर्स अधिक रेसोल्यूशन्स की हैं तथा 500 मीटर के रेसोल्यूशन पर पूरे देश के लिए संयुक्त आवृत्ति टेबल लगायी गयी हैं.
इसके अतिरिक्त एनसीईपी/सीएफएसआर का अध्ययन करने के पश्चात् मानचित्र की सटीकता बढाई जा सकती है. एटलस गतिशील मेसो-सूक्ष्म युग्मित डब्ल्यूआरएफ मॉडल तकनीक का उपयोग करता है.
पवन ऊर्जा क्षेत्र और संसाधन एटलस का निर्माण
इसमें उपग्रह तथा विश्व के विशालतम ग्राउंड डाटा, जिसमें 1300 स्थान शामिल हैं, के आंकडों की जानकारी का प्रयोग किया गया है.
नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के निर्देश के तहत, राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान ने जीआईएस आधारित पवन उर्जा संसाधन तैयार किया जिसमें वैज्ञानिक तथ्य, प्रमाणिक जानकारी तथा भौगोलिक जानकारियों का प्रयोग किया गया है.
एनआईडब्ल्यूई ने मेसो पैमाने पर किये गये अध्ययन के अनुसार इन मानचित्रों को तैयार किया तथा भारतीय पवन एटलस को 50 मीटर की सांकेतिक ऊंचाई, 80 मीटर की हब ऊंचाई एवं 5 किलोमीटर के रेसोल्यूशन के साथ अप्रैल 2010 में रिसो-डीटीयू, डेनमार्क के साथ आरंभ किया.
वर्तमान में संभावित आकलन काफी अधिक रेसोल्यूशन (5 किलोमीटर से अधिक) पर किया गया है जिसमें अत्याधुनिक मेसो-माइक्रो न्यूमेरिकल विंड फ्लो मॉडल का भारत के 1300 से अधिक स्थानों पर प्रयोग किया गया है.
भूमि सूचना भूमि की उपलब्धता के आकलन के माध्यम से लिया गया है जिसमें भुवन एटलस के माध्यम से मौजूद लैंड यूज़ लैंड कवर (एलयूएलसी) आंकड़ों को शामिल किया गया है.
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