केंद्र सरकार ने 5 दिसंबर 2014 को स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (सेल) में से अपनी 5 फीसदी हिस्सेदारी वापस ले ली. सरकार ने सेल के 20.65 करोड़ शेयरों को सेबी के नियमों और नियमन के अनुसार स्टॉक एक्सचेंजों के जरिए ऑफर फॉर सेल (ओएफएस) के जरिए वापस ली. 83 रुपये प्रति शेयर के फ्लोर दर पर सेल के 5 फीसदी हिस्सेदारी बेचने के बाद केंद्र सरकार ने करीब 1715 करोड़ रुपये जुटाए.
परिणामस्वरुप, सेल में सरकार की हिस्सेदारी 80 फीसदी से कम होकर 75 फीसदी रह गई और सार्वजनिक शेयरधारिता की लिस्टिंग पर सेबी के मानदंडों को पूरा किया.
सेबी के प्रतिभूति अनुबंध (विनियमन) के मुताबिक, राज्य–स्वामित्व वाली कंपनियों में न्यूनतम सार्वजनिक हिस्सेदारी 25 फीसदी होनी चाहिए और सभी सूचीबद्ध पीएसयू मानदंडों को 21 अगस्त 2017 तक इसका पालन कर लेना है.
इसके अलावा, 10 फीसदी शेयर खुदरा निवेशकों के लिए आरक्षित रखा जाएगा जो विनिवेश में दो लाख रुपये तक के शेयर खरीद सकते हैं. जारी किए गए आकार (इश्यू साइज) का कम–से–कम 25 फीसदी म्युचुअल फंड्स और बीमा कंपनियों के लिए आरक्षित किया गया.
पृष्ठभूमि
सेल का विनिवेश वित्त वर्ष 2014–15 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नीत एडीए सरकार द्वारा किया गया पहला पीएसयू शेयर बिक्री मामला है. वित्त वर्ष 2013–14 में सरकार ने सेल के शेयरों की बिक्री से 1500 करोड़ रुपये जुटाए थे जबकि संपूर्ण विनिवेश प्रक्रिया 16000 करोड़ रुपये पर थी.
मई 2014 में सत्ता में आने के बाद एनडीए सरकार ने सितंबर 2014 में कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल), तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) एवं नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन (एनएचपीसी) के शेयरों की बिक्री से वित्त वर्ष 2014–15 में 43425 करोड़ रुपये जुटाने का फैसला किया.
एनडीए सरकार की विनिवेश योजना में ओएनजीसी के 5 फीसदी शेयर, सीआईएल के 10 फीसदी शेयर और एनएचपीसी के 11.36 फीसदी शेयर शामिल हैं. इसके अलावा, सेल में 5 फीसदी हिस्सेदारी की बिक्री पिछली यूपीए सरकार द्वार जुलाई 2012 में कल्पित सेल में 10.82 फीसदी हिस्सेदारी की बिक्री की दूसरी किश्त है. सेल में 5.82 फीसदी का पहला विनिवेश मार्च 2013 में किया गया था जब सरकार ने उससे 1500 करोड़ रुपये जुटाए थे.
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