केंद्रीय मंत्रीमंडल ने 22 अगस्त 2013 को जनप्रतिनिधित्व कानून में संशोधन को मंजूरी दी. जनप्रतिनिधित्व कानून में संशोधन को उच्चतम न्यायालय के हाल ही में दिये गये उस निर्णय को निष्प्रभावी करने के लिए लाया गया है जिसके तहत दोषी सांसदों एवं विधायकों को अयोग्य घोषित किया जाना था.
केंद्रीय मंत्रीमंडल के द्वारा मंजूर किये जनप्रतिनिधित्व कानून अनुच्छेद 8 के उप-खंड 4 में किये गये संशोधन एवं जोड़े गये नये प्रावधान के अनुसार, किसी भी न्यायालय में दोषी ठहराये गये सांसद या विधायक की अपील पर अंतिम निर्णय आने तक उन्हें संसद या विधान मंडल की कार्यवाई में भाग लेने का अधिकार होगा. हालांकि, सशोधनों के अनुसार, दोषी सदस्यों को न तो सदन में वोट देने का अधिकार होगा, न ही वे वेतन या भत्ते पाने के अधिकारी होंगे. साथ ही, यदि कोई सदस्य न्यायिक हिरासत में है तो उसे चुनाव लड़ने का अधिकार होगा.
विदित हो कि सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एके पटनायक और न्यायाधीश न्यायमूर्ति सुधांशु ज्योति मुखोपाध्याय की खंडपीठ ने 10 जुलाई 2013 को निर्वाचित विधायकों एवं सांसदों को संरक्षण प्रदान करने वाली जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा आठ (4) को असंवैधानिक करार दिया था. जिसके विरोध में सभी राजनीतिक दलों ने एकजुटता दिखाते हुए तथा आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए सर्वसम्मति से जनप्रतिनिधित्व कानून में संशोधन को मंजूरी दी.
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