केन्द्रीय जहाजरानी मंत्रालय ने प्रमुख बंदरगाहों के लिए भूमि नीति पर दिशा निर्देशों 16 जनवरी 2014 को जारी किया. इसका उद्देश्य व्यावसायिक लाभ के लिए अपनी भूमि संसाधनों का लाभ उठाने में मदद करना.
यह नीतियां इन प्रमुख बंदरगाहों द्वारा भूमि आवंटन के लिए आवश्यक ढांचा प्रदान करती है तथा यह पारदर्शी तरीके से पट्टे देने और बंदरगाह भूमि की लाइसेंसिंग के रुप में बाहर ले जाने में मदद करेगी.
केंद्रीय जहाजरानी मंत्रालय ने वित्त वर्ष 2013-14 के पहले नौ महीनों में 2 लाख टन की क्षमता की परिकल्पना के लिए 6000 करोड़ रुपए के निवेश से जुड़े 20 बंदरगाह परियोजनाओं को मंजूरी दी.
दिशा निर्देशों में भी विवेकाधीन शक्तियों को कम कर दिया गया और आवंटन की सबसे पसंदीदा विधि के रूप में निविदा व नीलामी को निर्धारित किया गया.
भूमि नीति के दिशा निर्देश के मुख्य तथ्य
• भूमि को सीमा बंधन क्षेत्रों में निविदा व नीलामी के माध्यम से काम पर रखा जा सकता है.
• सीमा बंधन क्षेत्रों के बाहर भूमि को, प्रतिस्पर्धी बोली आमंत्रित करके ही लाइसेंस के माध्यम से आवंटित करने का प्रावधान है.
• वहीं सीमा बंधन क्षेत्रों के बाहर भूमि लाइसेंस के लिए एक प्रावधान भी है, लेकिन यह केवल बंदरगाह से संबंधित गतिविधियों के लिए किया जायेगा.
• संबंधित बंदरगाहों के बोर्ड में 30 साल तक की अवधि के लिए भूमि के पट्टे का अनुमोदन कर सकते हैं.
• 30 साल और 99 साल से ज्यादा के लिए भूमि के पट्टे के लिए सरकार की मंजूरी के अधिकार को प्राप्त करना होगा जिसे उच्चाधिकार प्राप्त समिति के तंत्र माध्यम से प्राप्त किया जायेगा.
• दिशा निर्देशों में यह अनिवार्य है कि देश के सभी 12 बड़े बंदरगाहों द्वारा प्रबंधित सारे देश के भूमि उपयोग योजना को कवर कर तैयार किया जायेगा.
• जारी किए गए दिशा निर्देश मुंबई , कांडला और कोलकाता के बस्ती क्षेत्रों से संबंधित भूमि के अलावा सभी बंदरगाहों पर लागू हैं.
भूमि प्रबंधन के लिए नीति निर्देश, बंदरगाह सुधारों और उदारीकरण की प्रक्रिया का हिस्सा हैं. केंद्रीय स्वामित्व वाले बंदरगाह, एक अपेक्षाकृत विनियमित माहौल में काम करते हैं. जबकि गैर प्रमुख बंदरगाह राज्य बंदरगाहों में शामिल हैं और निजी बंदरगाह मूल रुप से लचीलेपन वाले हैं. इन दिशा निर्देशों को जारी करने में सरकार द्वारा प्रमुख और गैर प्रमुख बंदरगाहों के लिए एक समान स्तर बनाने की कोशिश की जा रही है .
सुधार प्रक्रिया के एक हिस्से के रुप में, प्रमुख बंदरगाहों में पोर्ट क्षेत्र टैरिफ सेटिंग में उदारीकरण और मुद्रास्फीति तथा न्यूनतम दक्षता के लिए 2013 के मानकों में कार्गो टर्मिनल को अनुक्रमित कर निर्धारित किया गया था.
भारत के 12 प्रमुख बंदरगाह माल यातायात का लगभग 61 प्रतिशत संभालते हैं. प्रमुख बंदरगाहों मुंबई , कांडला, जेएनपीटी, मरमुगाउ, नया मैंगलोंर, कोचीन, चेन्नई, एन्नोर, वो चिंदमबरार, विशाखापट्टनम, पारादीप और ( हल्दिया सहित) कोलकाता रहे हैं.
“भारत में बंदरगाह” शीर्षक से एक वार्षिक सम्मेलन 15 जनवरी 2014 को आयोजित किया गया.
विदित हो कि 2.64 लाख एकड़ भूमि का इस्तेमाल देश के प्रमुख बंदरगाहों द्वारा किया जा रहा है, जिसे कि प्रमुख संसाधन के रूप में माना जा सकता है. भूमि का एक इष्टतम स्तर तक उपयोग नहीं किया गया है जबकि भूमि के उपयोग में कम रिटर्न दिया गया है. नई नीति प्रचलित बाजार दर के साथ भूमि के मूल्य को जो़ड सकती है.
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