भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 8 जनवरी 2014 को निर्देश जारी किया कि कोयला ब्लॉकों में कंपनियों द्वारा किए गए भारी निवेश को आधार मानने के बगैर मंजूरी लाइसेंस रद्द नहीं करने को एक आधार नहीं मान जा सकता. न्यायालय ने केंद्र सरकार से कहा है कि क्या सरकार इस तरह के आवंटन दुबारा करने का इरादा रखती है?
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति आरएम लोढा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ में तीन सदस्य शामिल है. बेंच ने कहा कि मंजूरी के बिना ही ब्लॉकों पर पैसा निवेश किया है, जिसके जोखिम का निर्णय कंपनियों ने खुद ले लिया है. समीति ने कहा कि इन कंपनियों में अवैध तरीके से निवेश किया गया है और इस मामले में उन्हें परिणाम भी भुगतना होगा.
अटार्नी जनरल जीई वाहनवती ने अदालत को सूचित किया कि लगभग दो लाख करोड़ रुपये का निवेश किया गया है और लाइसेंस रद्द करने की मंजूरी मिलने से उनके लिए मुश्किल हो जाएगा जिसे न्यायालय ने संज्ञान में लिया. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि निवेश संबंधी मंजूरी की प्रत्याशा में किया गया है ऐसा संभव हो सकता है लेकिन इसे उचित नहीं ठहराया जा सकता है.
कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि कंपनी कानून के तहत संरचित समय सीमा के साथ मंजूरी प्राप्त करने में असफल रहे तो इसे संरक्षित नहीं किया जा सकता. अदालत ने केंद्र सरकार से इस प्रकार के आवंटनों को दुबारा आवंटित करने के रुख के बारे में भी सरकार से प्रतिक्रिया मांगी है.

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