गिलाद ने भारतीय दवा कंपनियों को सोफोस्बूवीर का जेनेटिक संस्करण बनाने के लिए स्वैच्छिक लाइसेंस दिया

Sep 18, 2014, 12:55 IST

गिलाद ने भारतीय दवा कंपनियों को हेपिटाइटिस सी की दवा सोफोस्बूवीर का जेनरिक संस्करण बनाने के लिए स्वैच्छिक लाइसेंस प्रदान किया.

गिलाद ने भारतीय दवा कंपनियों को हेपिटाइटिस सी की दवा सोफोस्बूवीर का जेनरिक संस्करण बनाने के लिए स्वैच्छिक लाइसेंस 16 सितंबर 2014 को प्रदान किया. सोफोस्बूवीर दवा का पेंटेट अमेरिका के इस दवा कंपनी गिलाद के ही पास है.

इसके अलावा, गिलाद ने वंडर ड्रग (आश्यर्यजनक दवा) सोफोस्बूवीर के 24 सप्ताह के कोर्स को अमेरिका के 50.4 लाख रूपयों की तुलना में भारत में सिर्फ 1.1 लाख रूपये में उपलब्ध कराने का भी फैसला किया है.

समझौते के अनुसार, भारत की सात कंपनियों को इस सस्ती दवा को 91 विकासशील देशों में बेचने की अनुमति दी जानी है, लेकिन इन भारतीय कंपनियों को ब्राजील, रूस, चीन, थाईलैंड और कई अन्य मध्यम– आय (मिडिल–इनकम) वाले देशों में सोफोस्बूवीर को बेचने की अनुमति नहीं दी जाएगी.
वे सात भारतीय दवा कंपनियां जिन्हें स्वैच्छिक लाइसेंस दिया गया है, वे हैं– कैंडिला हेल्थकेयर, हेट्रो लैब्स, मयलान लैबोरेटरीज, रैनबैक्सी लैबोरेटरीज, सीक्वेंट साइंटिफिक और स्ट्राइड्स एक्रोलैब.

इन कंपनियों को सोफोस्बूवीर के जेनरिक संस्करण और उससे संबंधित एक दवा को विकसित कर उसे 91 विकासशील देशों में बेचने का अधिकार होगा.
इन कंपनियों को स्वैच्छिक लाइसेंस दिए जाने से इनके बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी जिसकी वजह से सोफोस्बूवीर के जेनरिक संस्करण की कीमत कम होगी और इस प्रकार विश्व स्तर पर रोगियों के बीच इसकी बेहतर पहुंच बनाने में भी मदद मिलेगी.

टिप्पणी
हालांकि यह सौदा भारत के लिए फायदेमंद रहेगा क्योंकि करीब 18.2 मिलियन लोगों के हेपिटाइटिस सी वायरस (एचसीवी) से संक्रमित होने का अनुमान है. हालांकि, 29.8 मिलियन एचसीवी संक्रमित लोगों के साथ चीन पहले स्थान पर है. ब्राजील और यूक्रेन में क्रमशः 2.6 मिलियन और 1.9 मिलियन एचसीवी संक्रमित लोग हैं, लेकिन इन्हें व्यावसायिक बाजार मानते हुए दायरे से बाहर रखा गया है.

थाइलैंड, मलेशिया, पेरु, अर्जेंटीना, इक्वाडोर और कोलंबिया जैसे कई अन्य देश हैं जहां एचसीवी से संक्रमित लोगों की संख्या बहुत अधिक है, लेकिन उन्हें भी समझौते के दायरे से बाहर रखा गया है.
 
समझौते में आमतौर पर गरीब देशों को शामिल किया गया है जहां संक्रमित लोगों की संख्या इतनी अधिक नहीं है. चूंकि ये देश पेटेंट प्रणाली का बोझ वहन नहीं कर सकते इसलिए इन्हें पेटेंट के दायित्वों से मुक्त कर दिया गया है.

हेपिटाइटिस सी के बारे में
• हेपिटाइटिस सी यकृत (लीवर) की एक बीमारी है जो हेपिटाइटिस सी वायरस की वजह से होती है. यह वायरस घातक और स्थायी संक्रमण दे सकता है जिसकी वजह से कुछ सप्ताह तक चलने वाली मामूली बीमारी से लेकर जीवन भर का गंभीर रोग हो सकता है.
• हेपिटाइटिस सी वायरस रक्त जनित वायरस होता है और यह आमतौर पर असुरक्षित इंजेक्शन, कुछ अस्पतालों में चिकित्सीय उपकरणों की अपर्याप्त रोगाणुनाशन और खुले (अनस्क्रीन्ड ब्लड) रक्त और रक्त उत्पाद की वजह से फैलता है.
• विश्व भर में 130– 150 मिलियन लोगों को स्थायी (क्रोनिक) हेपिटाइटिस सी का संक्रमण है.
• इनमें से पुराने हेपिटाइटिस सी से संक्रमित लोगों में लीवर सिरोसिस या लीवर कैंसर विकसित होने की संभावना प्रबल होती है.
• हर वर्ष हेपिटाइटिस सी– संबंधित लीवर की बीमारी से 350, 000 से 500,000 लोगों की मौत हो जाती है.
• वायरस रोधी दवाएं (एंटीवायरल मेडिसिन्स) हेपिटाइटिस सी के संक्रमण का इलाज कर सकती हैं लेकिन रोग के निदान और उपचार तक पहुंच कम है.
• वायरस रोधी उपचार की सफलता दर 50–90% है जो कि इस बात पर निर्भर है कि किस प्रकार का उपचार कराया जा रहा है और इससे लीवर कैंसर और सिरोसिस के विकास को कम करने में भी मदद करते पाया गया है.
• फिलहाल हेपिटाइटिस सी के लिए कोई वैक्सीन (टीका) नहीं है हालांकि इस क्षेत्र में अनुसंधान चल रहा है.

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