सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक निर्देश में कहा है कि जमीन के नीचे खनिज सम्पदा पर जमीन मालिक का अधिकार होता है, सरकार का नहीं. न्यायमूर्ति आरएम लोढा की अध्यक्षता वाली 3 न्यायाधीशों की पीठ ने यह निर्णय दिया.
सर्वोच्च न्यायालय की पीठ के निर्णय के अनुसार सामान्यतया भूमि के नीचे की मिट्टी और खनिज संपदा का स्वामित्व भूस्वामी के पास ही होना चाहिए बशर्ते भूस्वामी को किसी वैध प्रक्रिया के माध्यम से इससे वंचित नहीं किया गया. भूमिगत प्राकृतिक संसाधनों के दोहन को नियंत्रित करने संबंधी विभिन्न कानूनों का जिक्र करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इन कानूनों में कहीं भी यह घोषित नहीं किया गया है कि इस पर शासन का मालिकाना हक है.
न्यायालय ने इस दलील को अस्वीकार कर दिया कि भूमि के नीचे के संसाधनों पर भू स्वामी किसी प्रकार के अधिकार का दावा नहीं कर सकते हैं. क्योंकि खान और खनिज (विकास एवं नियमन) कानून 1957 की धारा 425 के तहत वैध लाइसेंस या पट्टे के बगैर देश में किसी भी प्रकार की खनन गतिविधि प्रतिबंधित है.
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यह कानून किसी भी तरह से यह नही कहता है कि खनिज सपदा में शासन का मालिकाना हक होगा और न ही इसमें किसी खदान के स्वामी को उसके मालिकाना हक से वंचित करने का प्रावधान है. शुल्क या कर की उगाही करने संबंधित सरकार के दावे के संदर्भ में पीठ ने कहा कि यह शासकीय अधिकार है, मालिकाना हक नहीं है. इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को भू स्वामी द्वारा रॉयल्टी के भुगतान की देनदारी के मसले पर विचार करने से इंकार कर दिया क्योंकि इसका फैसला बड़ी पीठ द्वारा किया जाना है.
विदित हो कि केरल में कुछ भूमि मालिकों की याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया. उच्च न्यायालय द्वारा खनिज सम्पदा पर राज्य सरकार के पक्ष में दिए गए निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी.
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