राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग ने जामिया मिलिया इस्लामिया केंद्रीय विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान के रूप में मान्यता 22 फरवरी 2011 को प्रदान की. सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमएसए सिद्दीकी की अध्यक्षता वाली आयोग की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने जामिया मिलिया इस्लामिया को संविधान के अनुच्छेद 30 (1) एवं राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग अधिनियम की धारा 2 (जी) के अनुसार अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान का दर्जा प्रदान किया. अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान का दर्जा मिल जाने के बाद अब संस्थान में प्रवेश के लिए अल्पसंख्यकों को 50 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा. साथ ही अनुसूचित जाति व जनजाति के छात्रों को 22.5 प्रतिशत और जामिया से ही स्कूली पढ़ाई शुरू करने वालों का 25 प्रतिशत का कोटा खत्म हो गया.
विदित हो कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की सरकार में उच्च शिक्षण संस्थानों के प्रवेश में पिछड़े वर्ग के छात्रों को 27 प्रतिशत आरक्षण के कानून के साथ ही जामिया में उसके अमल को लेकर विरोध शुरू हो गया था. जामिया टीचर्स एसोसिएशन की ओर से उसके तत्कालीन सचिव प्रो. तबरेज आलम और जामिया ओल्ड ब्वायज एसोसिएशन और जामिया स्टूडेंड यूनियन ने वर्ष 2006 में न सिर्फ इस आरक्षण का विरोध किया, बल्कि विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे के लिए आयोग में वाद भी दायर कर दिया था. वादकारियों ने इसमें जामिया के कुलपति, मानव संसाधन विकास मंत्रालय और अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय को पक्षकार बनाया था. विश्वविद्यालय प्रशासन (रजिस्ट्रार एसएम अफजल) ने वर्ष 2006 में आयोग में शपथ पत्र देकर जामिया को अल्पसंख्यक दर्जा दिए जाने का विरोध किया था. हालांकि विश्वविद्यालय ने बाद में नरम रुख अपना लिया.
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अलीगढ़ उत्तर प्रदेश को अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान का दर्जा देने संबंधी वाद सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है.
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