जम्मू और कश्मीर (जे एंड के) सरकार ने 21 मई 2014 को नई भर्ती नीति, 2014 समाप्त कर दी. गैर-राजपत्रित पदों के लिए निर्मित इस नई नीति के अंतर्गत नियुक्त किए जाने वाले व्यक्तियों को पहले पाँच वर्षों तक वेतन के स्थान पर वृत्ति (स्टाइपेंड) दी जाती थी.
नीति को रद्द करने का निर्णय जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला द्वारा लोकसभा चुनाव 2014 में अपनी पार्टी नेशनल कांफ्रेंस की करारी हार के बाद सुधार की प्रक्रिया के एक अंग के रूप में लिया गया.
इसके अतिरिक्त, शिक्षित युवाओं में इस नीति की भारी आलोचना हो रही थी. कहा जा रहा था कि 2011 में इस नीति के कार्यान्वयन के बाद दिहाड़ी मजदूर भी सरकारी सेवाओं में भर्ती होने वाले नए कर्मचारियों से ज्यादा पैसा कमा रहे हैं.
इससे पूर्व नवंबर 2013 में जम्मू और कश्मीर के उच्च न्यायालय ने अपनी कश्मीर शाखा के समक्ष दायर की गई एक जनहित याचिका पर फैसला सुनाते हुए इस नीति पर रोक लगा दी थी. किंतु दिसंबर 2013 में उसने नीति लागू करने को हरी झंडी दिखा दी थी.
नई भर्ती नीति 2011 के बारे में
नई भर्ती नीति 2011 राज्य मंत्रिमंडल द्वारा 2011 में अनुमोदित की गई थी. इस नीति के अनुसार,
• श्रेणी-III और श्रेणी-IV के पदों पर नए भर्ती होने वाले कर्मचारियों को पहले दो वर्षों में मूल वेतन (वेतन बैंड + ग्रेड वेतन) के 50 प्रतिशत के बराबर स्थिर मासिक वेतन दिया जा रहा था.
•पाँच वर्ष की कुल अवधि के शेष तीन वर्षों में कर्मचारी मूल वेतन के लगभग 75 प्रतिशत के बराबर स्थिर वेतन प्राप्त करने के पात्र थे.
• जिस अवधि के लिए वे कर्मचारी स्थिर मासिक वेतन प्राप्त कर रहे थे, वह अवधि वरिष्ठता और पेंशन-अंशदान (नई पेंशन योजना के अंतर्गत) सहित समस्त सेवा-लाभों के प्रयोजन के लिए गिनी जानी थी.
• पाँच वर्षों के लिए उन्हें कोई महँगाई भत्ता, मकान किराया भत्ता और नगर प्रतिपूर्ति भत्ता आदि नहीं मिलता था.

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