उर्दू के मशहूर शायर एवं गीतकार अखलाक मोहम्म्द खान 'शहरयार' का अलीगढ़ में 13 फरवरी 2012 को कैंसर के कारण निधन हो गया. अखलाक मोहम्म्द खान 'शहरयार' को वर्ष 2008 के साहित्य के ज्ञानपीठ पुरस्कार (44वें ज्ञानपीठ) से सम्मानित किया गया था. शहरयार 76 वर्ष के थे. उनके परिवार में दो बेटे तथा एक बेटी हैं.
शायर एवं गीतकार अखलाक मोहम्म्द खान 'शहरयार' ने उमराव जान, गमन, अंजुमन, आहिस्ता-आहिस्ता आदि फिल्म के लिए गीत लिखे थे जिसमें उन्हें काफी शोहरत मिली थी. वह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में उर्दू के प्रोफेसर और उर्दू के विभागाध्यक्ष पद से अवकाश ग्रहण कर चुके थे. शहरयार ज्ञानपीठ पुरस्कार पानेवाले उर्दू के चौथे शायर थे. उन्हें ज्ञानपीठ सम्मान उर्दू साहित्य में उनके योगदान के लिए दिया गया था. अखलाक मोहम्म्द खान 'शहरयार' को वर्ष 1987 में उनकी रचना ख़्वाब के दर बंद हैं के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार भी दिया गया था.
उर्दू के मशहूर शायर एवं गीतकार अखलाक मोहम्म्द खान 'शहरयार' द्वारा रचित कुछ काव्य संग्रह भी प्रकाशित हुए थे. उनकी प्रमुख कृतियों में ख्वाब का दर बंद है, शाम होने वाली है, मिलता रहूंगा ख्वाब में, इस्म-ए-आजम, शहरे जहां, उसके हिस्से की जमीन, नींद की किरचें आदि शामिल हैं. उनके द्वारा रचित कुछ मशहूर गीत हैं - कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता, इन आंखों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं, दिल चीज क्या है आप मेरी जान लीजिए, सीने में जलन आंखों में तूफान सा क्यों है? इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यों है....
उर्दू शायरी को नए मुकाम तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाने वाले शहरयार को उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, दिल्ली उर्दू पुरस्कार और फिराक सम्मान सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था.
अखलाक मोहम्म्द खान का जन्म वर्ष 1936 में उत्तर प्रदेश के बरेली के आंवला क्षेत्र में हुआ था. शहरयार का मूल नाम कुंवर अखलाक मुहम्मद खान है, लेकिन उन्हें उनके तखल्लुस यानी उपनाम शहरयार से ही पहचाना जाता रहा. उनकी प्रारंभिक शिक्षा हरदोई में हुई थी. वर्ष 1961 में उर्दू में स्नातकोत्तर की डिग्री लेने के बाद उन्होंने 1966 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में उर्दू के व्याख्याता के तौर पर काम शुरू किया था. वह यहीं से उर्दू विभाग के अध्यक्ष के तौर पर सेवानिवृत्त भी हुए थे.
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