दिवालियापन कानून सुधार समिति ने 4 नवम्बर 2015 को कानून का प्रारूप वित्त मंत्री अरुण जेटली को सौंप दिया. इस समिति के अध्यक्ष पूर्व कानून सचिव टीके विश्वनाथन हैं. इसी रिपोर्ट में दिवालियापन पर कानून बनाने की सिफारिश की गई है.
देश में अब तक दिवालियापन पर पर्याप्त कानूनी प्रावधान नहीं होने की वजह से किसी कंपनी के दिवालिया घोषित होने के बाद भी उसके प्रमोटरों का नियंत्रण तो होता है, जबकि उसे कर्ज देने वालों की बात नहीं सुनी जाती. यही वजह है कि जिन लोगों ने कर्ज दिया है, उनका पैसा डूब जाता है. एक अनुमान के मुताबिक दिवालिया कपंनियों से मात्र 20 प्रतिशत तक ही कर्ज वसूल हो पाता है.
इस समस्या को दूर करने के लिए समिति ने दिवालियापन पर एक नियामक बनाने का प्रावधान प्रस्तावित कानून में किया है. साथ ही समिति ने किसी कंपनी के दिवालियापन के मामले को 180 दिन में सुलझाने की समय सीमा तय करने की सिफारिश भी की है.
ऐसा होने पर अगर कोई कंपनी दिवालियापन के लिए आवेदन करती है तो निर्णय करने में वक्त नहीं लगेगा. इसके साथ ही एक दिवालियापन प्राधिकरण का प्रावधान भी इस कानून के प्रस्ताव में दिया गया है. यह प्राधिकरण कर्जदाताओं के मामलों पर सुनवाई करेगा.
माना जा रहा है कि दिवालियापन पर कानून बनने से देश में निवेश का माहौल बेहतर होगा. विश्व बैंक की हाल में जारी हुई "ईज ऑफ डूइंग बिजनेस" रिपोर्ट में वैसे तो 189 देशों की सूची में भारत की रैंकिंग 130 है, लेकिन दिवालियापन के मामले सुलझाने की व्यवस्था के संबंध में भारत की रैंकिंग 136 है.
यही कारण है कि सरकार इस पर इतना ध्यान दे रही है. ऐसे में दिवालियापन पर कानून बनने से कारोबार आसान बनाने के मामले में भारती की रैंकिंग में भी और सुधार होगा.
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