उत्तर प्रदेश स्थित इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने 4 नवंबर 2015 के अपने एक आदेश में कहा कि दुष्कर्म के कारण जन्मे बच्चे का अपने जैविक पिता की संपत्ति में अधिकार होता है. हालांकि, यह अधिकार पर्सनल लॉ का विषय है क्योंकि यह जानना जरूरी होगा कि वह किससे संबंधित है.
इसके साथ ही न्यायालय ने कहा कि वह बच्चा या बच्ची उस जैविक पिता की नाजायज संतान के तौर पर ही देखी जाएगी. अगर बच्चा या बच्ची को कोई गोद ले लेता है तो फिर उसका जैविक पिता की संपत्ति में अधिकार खत्म हो जाता है.
विदित हो कि एक दुष्कर्म केस की सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के न्यायमूर्ति शाबिहुल हसनैन और न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय ने सरकार को गुजारा भत्ता के तौर पर 10 लाख रुपए 13 वर्षीय दुष्कर्म पीडि़ता को देने का आदेश दिया. साथ ही सरकार को यह भी सुनिश्चित करने को कहा कि जब वह बालिग हो जाए तो उसे नौकरी मिले.
संबंधित मुख्य मामला:
इस मामले से संबंधित दुष्कर्म पीडि़त लड़की एक गरीब परिवार से है. इस साल के शुरुआत में उससे दुष्कर्म हुआ, जिससे वह गर्भवती हो गई और हाल ही में उसने एक बच्ची को जन्म दिया. उसके परिवार को काफी समय के बाद बेटी के गर्भवती होने का पता चला, तब तक कानूनी तौर पर गर्भपात कराने की समय सीमा (21 सप्तााह) खत्म हो चुकी थी. इस पर उसके परिवार ने गर्भपात कराने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. लेकिन हाईकोर्ट द्वारा बनाए गए डॉक्टरों के पैनल ने इस स्थिति में गर्भपात कराने की सलाह नहीं दी. उन्होंने कहा कि इससे पीडि़ता की जान को खतरा है. इस पर पीडि़ता ने कहा था कि उसकी बेटी इस 'शर्म' के साथ समाज में जीवीत नहीं रह सकती है इसलिए बेहतर होगा कि वह बच्ची को जन्म दे और उसे कोई गोद ले ले. इसपर न्यायालय ने कहा कि नवजात बच्ची को गोद लेने के लिए दिया जा सकता है. लेकिन अगर बच्ची को कोई गोद लेता है तो फिर उसका अपने जैविक पिता की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं रह जाएगा. लेकिन कोई उस बच्ची को गोद नहीं लेता है तो बिना कोर्ट के निर्देश के ही उसका अपने जैविक पिता की संपत्ति में अधिकार होगा.
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