साफ पानी, पौष्टिक चारा तथा स्वच्छ वातावरण देसी गायों से दूध का उत्पादन तीन गुना तक जबकि संकर प्रजातियों की गायों से पांच गुना तक अधिक दूध उत्पादन को बढ़ाने में सहायक होती है. सैम हिंगिनबॉटम इंस्टीटयूट ऑफ एग्रीकल्चर, टेक्नोलॉजी एंड साइंसेज (शियाट्स) इलाहाबाद के डिपार्टमेंट ऑफ बायोलोजिकल साइंसेज में प्रोफेसर मैसी देवासहायम की देखरेख में शोधार्थी एसडी मैकार्टी ने वर्ष 2002 में देशी गाय से दुग्ध उत्पादन पर एक शोध शुरू किया था. शोध के नतीजे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद को भेजने के साथ ही जून 2011 के राष्ट्रीय जर्नल इंडियन काउ में प्रकाशित किए गए.
भारत में दुग्ध उत्पादन में तेजी से गिरावट के कारणों का पता लगाने हेतु सैम हिंगिनबॉटम इंस्टीटयूट ऑफ एग्रीकल्चर, टेक्नोलॉजी एंड साइंसेज (शियाट्स) के वैज्ञानिकों ने देसी व उन्नत प्रजातियों की गायों के खानपान और रखरखाव को लेकर अध्ययन के साथ ही उनके दुग्ध उत्पादन को भी रिकार्ड किया. शोध के दौरान साफ पानी व अनुकूल वातावरण में 11 वर्ष उम्र की देसी गायों से हजार लीटर, जबकि चार से पांच वर्ष की गाय से 1500 लीटर प्रति वर्ष दूध प्राप्त किया गया. ध्यान देने वाली यह है कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के रिकार्ड के अनुसार देसी गाय 500 लीटर दूध का उत्पादन करती है. शोध के दौरान गायों को सामान्य चारा (हरा चारा जैसे बड़सीन व चरी के अलावा गेहूं का भूसा, खली, चूनी व चोकर) ही दिया गया. साफ पानी और बेहतर वातावरण के कारण देशी गायें बीमारियों से काफी हद तक बची भी रहीं. जबकि पर्याप्त देखभाल के बाद भी उन्नत प्रजाति शाहीवाल, धारवाड़ व रेड सिंधी गाय बीमारी की चपेट में आईं.
सैम हिंगिनबॉटम इंस्टीटयूट ऑफ एग्रीकल्चर, टेक्नोलॉजी एंड साइंसेज (शियाट्स) इलाहाबाद के डिपार्टमेंट ऑफ बायोलोजिकल साइंसेज में प्रोफेसर मैसी देवासहायम के अनुसार भारत में वर्तमान में 82 प्रतिशत देसी और 18 प्रतिशत उन्नत प्रजातियों की गायें हैं. शोध पर आधारित रिपोर्ट में भारत में दुग्ध उत्पादन में तेजी से गिरावट का कारण है - देसी गायें का छुट्टा जानवरों की श्रेणी में आना. देशी गायों को पशुपालक केवल दूध दूहने के समय ही तलाशते हैं, अन्यथा ये सड़कों पर घूम-टहल कर ही पेट भरती हैं. गांवों में भी पशुपालक आमतौर पर भैंस व जर्सी गाय को तो खली, चूनी, चोकर देते हैं, लेकिन देसी गायों को भूसे में हल्का चोकर मिलाकर ही काम चलाते हैं. खुराक का यही अंतर गायों के दूध उत्पादन पर पड़ता है.
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