5 मई 2010 को सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति केजी बालाकृष्णन की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने आपराधिक जांच में नारको परीक्षण, ब्रेन मैपिंग और पॉलीग्राफ परीक्षण को निजता के अधिकार का उल्लंघन एवं असंवैधानिक करार दिया. न्यायाधीश न्यायमूर्ति केजी बालाकृष्णन, न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरवी रवीन्द्रन और न्यायाधीश न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी की खंडपीठ ने अनुच्छेद 20 (3) [No person accused of any offence shall be compelled to be a witness against himself] का उल्लेख करते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति को खुद उसके ही बयानों के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता. संविधान के अनुच्छेद 20(3) के तहत प्रत्येक नागरिक को बोलने या चुप रहने का विकल्प चुनने का अधिकार है. यद्यपि आपराधिक जांच में चिकित्सीय परीक्षण का प्रावधान है परन्तु नारको परीक्षण, ब्रेन मैपिंग और पॉलीग्राफ परीक्षण अपराध प्रक्रिया की धारा 53, 53ए और 54 के तहत चिकित्सीय परीक्षण में नहीं आता.
महत्त्वपूर्ण तथ्य
विदित हो कि भारत में नार्को परीक्षण की शुरूआत 2000 में बेंगलुरू की फोरेंसिक साइंसेस लैबोरेटरी (एफएसएल) में हुई थी. जबकि विश्व में प्रथम बार इसका परीक्षण 1922 में टेक्सास के प्रसूति विज्ञानी राबर्ट हाउस ने दो कैदियों पर किया था. भारत में निम्नलिखित बहुचर्चित केसों में नारको परीक्षण किया गया.
1. फरवरी 2002 में गोधरा ट्रेन हमले के सातों अभियुक्तों का
2. स्टाम्प घोटाले के अब्दुल करीम तेलगी और मोहम्मद अब्दुल वहीद कादरी सहित पांच अभियुक्तों का
3. निठारी कांड के अभियुक्तों का
4. फर्जी पासपोर्ट: अबू सलेम
5. आरूषि हत्याकांड और मालेगांव बम कांड के अभियुक्तों का
नारको परीक्षण
इस परीक्षण में सोडियम पेंटाथोल नामकदवा का प्रयोग कर अभियुक्त को अर्द्धचेतन या अर्द्धनिद्रा अवस्था में कर दिया जाता है. इस अवस्था में अभियुक्त अपनी बात खुद तो नही कह सकता परन्तु कुछ सुझाव देने पर विशेष या साधारण प्रश्नों के उत्तर दे सकता है. इन उत्तरों को सहज माना जाता है, क्योंकि अर्द्धचेतन अवस्था में व्यक्ति उत्तरों में छल-कपट करने में अक्षम होता है.
पॉलीग्राफ जांच
यह एक ऐसा यंत्र है, जो शरीर के रक्तचाप, पल्स, श्वसन क्रिया और त्वचा संचालन शक्ति में होने वाले परिवर्तनों को दर्शाता है, इसमें अभियुक्त से क्रमवार प्रश्न किया जाता हैं, सही जवाब देने अथवा गुमराह करने की स्थिति मेंपरिवर्तन स्पष्ट नजर आने लगता है.उस अंतर को देखकर जांचकर्ता उसके दोष का आकलन करता है.
ब्रेन मैपिंग
ब्रैन मैपिंग परीक्षण साक्ष्य एकत्र करने की वैज्ञानिक विधि है.जिसमें व्यक्ति के मस्तिष्क की विघुतीय गतिविधियों का अध्ययन करने और पी-300 तरंग को दर्ज करने के लिए सिर में एक सेंसर लगाया जाता है. इसके बाद व्यक्ति को कंप्यूटर मानिटर के सामने बैठाया जाता है.
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