रूस ने 2 सितंबर 2015 को फ्रांस के उस प्रस्ताव को ख़ारिज दिया जिसमें उसने मांग की थी कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों द्वारा बड़े पैमाने पर अत्याचार से जुड़े मामलों में कम से कम वीटो शक्ति का उपयोग किया जाए.
रूस के राजदूत विताली चुर्किन के अनुसार यह एक व्यावहारिक प्रस्ताव नहीं है इसलिए वे प्रस्ताव का विरोध करेंगे. उन्होंने कहा कि बड़े पैमाने पर अत्याचार पर वीटो करना राजनैतिक हथियार बन सकता है तथा उन्होंने यह भी प्रश्न उठाया कि इस तरह के फैसले लेने के लिए किसी मंशा का प्रयोग किया जा सकता है.
फ्रांस के सुझाव को 70 नॉन-वीटो सदस्य राज्यों ने समर्थन दिया जबकि चीन तथा संयुक्त राज्य अमेरिका ने कोई जवाब नहीं दिया.
वीटो एवं संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद
वीटो अधिकार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थाई सदस्यों को दिए गए अधिकार हैं, इनमें ब्रिटेन, चीन, फ्रांस, रूस तथा अमेरिका शामिल हैं.
इसमें इन पांच देशों को किसी प्रस्ताव के विपक्ष में मत देने का अधिकार प्राप्त है. इससे किसी भी प्रस्ताव को सदन के पटल पर रखा जा सकता है अथवा उसे नकारा जा सकता है.
अनुपस्थित रहने अथवा वोटिंग से बाहर रहने पर प्रस्ताव को पास होने से रोका नहीं जा सकता.
वीटो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांचों देशों के लिए महत्वपूर्ण शक्ति है जिसे संयुक्त राष्ट्र के निर्माण के समय, 1945, से ही उन्हें दिया गया है. वर्ष 2015 में यह संस्था अपने गठन की 70 वीं वर्षगांठ मना रहा है.
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