बंबई उच्च न्यायालय ने 12 मई 2014 को मुंबई और पुणे की मतदाता सूची में संशोधन हेतु आदेश दिया.यह फैसला जस्टिस अभय ओका एंव जस्टिस एम एस सोनक की बेंच ने उन पाँच जनहित याचिकाओं के बाद दिया जिनमें कहा गया था कि मुंबई और पुणे की मतदाता सूची में से 5 लाख लोगो के नाम गायब है.
न्यायालय ने इसी मामले का संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार से पूछा है कि क्या उसने मतदाता सूची में संशोधन हेतु मुंबई और पुणे के तीन समाचारपत्रों में विज्ञापन दिया जिससे प्रत्येक व्यक्ति तक वह सूचना पहुँच सके और वह अपनी राय और विरोध दर्ज करा सके.
न्यायालय ने इस दलील को भी खारिज कर दिया जिसमें कहा गया कि 2014 के लोकसभा चुनावो के परिणाम पर रोक लगे और मतदाताओं का विलोपन की जांच कराने के लिए एक सेवानिवृत्त उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक एसआईटी की नियुक्ति की मांग की गयी.
कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया है कि उसका वर्तमान में हो रहे 2014 के लोकसभा चुनावो से कोई मतभेद नहीं है.
कोर्ट ने याचिकाकर्ताओ की उस दलील को भी खारिज कर दिया जिसमें उनके द्वारा कहा गया कि उनके क्षेत्र में दोबारा मतदान हो जिससे वह व्यक्ति भी मतदान कर सके जिसका नाम मतदाता सूची से गायब था.
अदालत ने आगे उस दलील को भी खारिज कर दिया जिसमें संविधान की धारा 329 की 23(3) के अधिनियम तथा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 के संबंधित अनुच्छेद को चुनौती दी गयी थी.
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