प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में आधिकारिक बाल श्रम (प्रतिबंध और नियमन) बिल, 2012 में संशोधनों को शामिल करने के प्रस्ताव को 13 मई 2015 को मंजूरी प्रदान की गयी. देश के सामाजिक ताने-बाने और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों को ध्यान में रखते हुए मंत्रिमंडल ने 14 साल से कम उम्र के बच्चों को काम पर रखने पर प्रतिबंध लगाने संबंधी प्रस्तांव को मंजूरी प्रदान की. देश में बड़े पैमाने पर परिवारों के भीतर बच्चेे कृषि कार्य या कारीगरी में अपने माता-पिता की मदद करते हैं और इस तरह अपने माता-पिता की मदद करते हुए वे इस काम में प्रवीण हो जाते हैं. इसलिए बच्चेा की शिक्षा और देश की सामाजिक-आर्थिक स्थिति के साथ इसके ताने-बाने के बीच संतुलन बैठाने की आवश्यकता है.यही वजह है कि कैबिनेट ने बाल श्रम कानून में संशोधनों को मंजूरी देते हुए बच्चों को उनके परिवार या परिवार के उद्यम में मदद देने की अनुमति दे दी है. ध्यातव्य है कि परिवार के अंदर चलने वाले ये काम खतरनाक किस्म के नहीं होने चाहिए. बच्चे इस काम को स्कूल से आने के बाद और छुट्टियों के दौरान कर सकते हैं. बच्चे विज्ञापन, फिल्मस, टेलीविजन धारावाहिकों या ऐसे किसी मनोरंजन या सर्कस को छोड़कर किसी खेल गतिविधि में काम कर सकते हैं.
इसके तहत बाल श्रम (प्रतिबंध और नियमन) बिल, 1986 में कई संशोधन किये जायेंगें.
इस बिल में किये जाने वाले संशोधनों में शामिल महत्वपूर्ण संशोधन हैं
1. सभी कार्यों और प्रक्रियाओं में 14 साल से कम उम्र के बच्चों को काम पर रखना प्रतिबंधित होगा. इसमें प्रतिबंध की आयु, मुक्त और अनिवार्य शिक्षा कानून, 2009 के तहत निर्धारित आयु के बराबर कर दी गयी है. किन्तु अपवाद स्वरूप यह नियम निम्नांकित शर्तों के साथ लागू नहीं होते -
क) जहां बच्चा परिवार या परिवार के ऐसे कारोबार में काम कर रहा हो जो निर्धारित खतरनाक काम और प्रक्रिया के तहत न आता हो और यह काम भी वह स्कूरल से आने के बाद और छुट्टियों में करता हो.
ख) जहां बच्चा विज्ञापन, फिल्मो, टेलीविजन धारावाहिकों या ऐसे किसी मनोरंजन या सर्कस को छोड़कर किसी खेल गतिविधि में काम कर रहा हो. इसमें शर्ते और सुरक्षा से जुड़े कदम शामिल हो सकते हैं तथा जो काम बच्चे की स्कूली शिक्षा को प्रभावित न करते हों.
2. बाल श्रम (प्रतिबंध और नियमन) कानून के तहत किशोरों (14 से 18 वर्ष की उम्र) के काम की नई परिभाषा तय की गई है. इसमें खतरनाक कामों और प्रक्रिया में उनके श्रम को प्रतिबंधित किया गया है.
3. कानून का उल्लंधघन न हो, इसके लिए नए संशोधनों में नियोक्ताेओं के खिलाफ कड़े दंड के प्रावधानों का प्रस्ताव है.
क) पहली बार कानून का उल्लंनघन कर अपराध करने पर छह महीने से कम अवधि की सजा का प्रावधान नहीं होना चाहिए. आगे यह अवधि दो साल तक बढ़ाई जा सकती है. जुर्माने की रकम भी 20,000 से कम नहीं होगी और इसे 50,000 रुपए तक बढ़ाया जा सकता है या फिर जुर्माना और सजा एक साथ हो सकती है. इसके पहले सजा की अवधि तीन महीने से कम की नहीं होती थी और जुर्माने की रकम 10,000 थी, जो 20,000 रुपए तक बढ़ाई जा सकती थी या फिर दोनों एक साथ लागू होते थे.
ख) दूसरी बार अपराध करने पर न्यूनतम कैद की अवधि एक साल होगी और इसे बढ़ाकर तीन साल तक किया जा सकता है. इससे पहले दूसरी बार या उसके बाद भी अपराध करने पर कैद की न्यूानतम अवधि छह महीने की थी, जो दो साल तक बढ़ाई जा सकती थी.
4. कानून का उल्लंघन करते हुए बच्चे या किशोर को काम पर रखने के नियोक्ता के अपराध को संज्ञेय बना दिया गया है.
5. माता-पिता/अभिभावकों के लिए सजा : मूल कानून में बाल श्रम अपराध के लिए माता-पिता के लिए भी वही सजा है जो नियोक्ताओं के लिए हैं. हालांकि माता-पिता और अभिभावकों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को देखते हुए पहली बार अपराध करने पर किसी सजा का प्रावधान नहीं होगा लेकिन दूसरी और उसके बाद के अपराध के लिए जुर्माना लगाया जाएगा जो 10,000 रुपए तक बढ़ाया जा सकता है.
6. एक या अधिक जिलों में बाल और किशोर श्रम पुनर्वास कोष की स्थापना की जाएगी. इस कोष से बाल और किशोर श्रम से छुड़ाए गए बच्चों के पुनर्वास की व्यवस्था की जाएगी. इस तरह यह कानून भविष्य में अपने आप में पुनर्वास गतिविधियों के लिए एक कोष सिद्ध होगा.
सीएलपीआर एक्ट 1986 में संशोधन की आवश्यकता क्यों?
प्रथम, संशोधन बिल 2012 एवं आधिकारिक संशोधनों द्वारा शिक्षा की आवश्यकता तथा सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य के बीच सामंजस्य स्थापित किया जा सकेगा.
दूसरे, भारत के सामाजिक-आर्थिक परिवेश में बच्चे अपने माता-पिता को कृषि, हथकरघा आदि व्यवसायों में मदद करते हैं तथा इन व्यवसायों की मूल बातें सीख कर आगे चलकर इसी के अनुसार कार्य करते हैं.
तीसरे, बाल श्रम (प्रतिबंध और नियमन) कानून (सीएलपीआर एक्ट) 1986 के साथ निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार कानून, 2009 के साथ समन्वयित नहीं था. यह कानून 6 से 14 वर्ष के बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा मुहैया कराता है.
सीएलपीआर एक्ट, अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की धाराओं 138 तथा 182 के अनुरूप नहीं था जिसमें 18 वर्ष से कम आयु के बच्चो का ऐसे कार्यस्थलो पर रोज़गार करना प्रतिबंधित है जहां स्वास्थ्य, सुरक्षा तथा नैतिकता के नियमों का उल्लंघन होता हो.
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