प्रतिष्ठित लैंसेट पत्रिका (Lancet journal) में मई 2011 के चौथे सप्ताह में प्रकाशित एक अध्ययन में भारत के शिक्षित व धनी तबकों में कन्या भ्रूण हत्या (Girl Child Abortion) के तेजी से बढ़ने की बात सामने आई है. भारत में कराए गए इस अध्ययन में यह पाया गया कि संतान के रूप में एक कन्या होने के बाद यदि गर्भ में दूसरी बार भी लड़की आ जाती है तो ऐसे भ्रूण की हत्या करवाने की प्रवृत्ति भारत में धनी एवं शिक्षित तबकों में तेजी से बढ़ रही है.
लैंसेट पत्रिका (Lancet journal) में छपे इस अध्ययन के निष्कर्षों के अनुसार वर्ष 1980 से 2010 के बीच इस तरह के गर्भपातों की संख्या 42 लाख से एक करोड़ 21 लाख के बीच रही है. अध्ययन में यह भी निष्कर्ष दिया गया कि लड़के-लड़कियों के अनुपात में कमी की प्रवृत्ति जो अभी तक उत्तरी राज्यों में ही ज्यादा पाई जाती थी अब उसका प्रकोप पूर्वी और दक्षिणी राज्यों में भी फैलने लगा है.
कन्या भ्रूण हत्या (Girl Child Abortion) से जुड़े इस अध्ययन में जनगणना आंकड़ों और राष्ट्रीय सर्वेक्षण के जन्म आंकड़ों का विश्लेषण किया गया. इस विश्लेषण का मकसद ऐसे परिवारों में दूसरे बच्चे के जन्म में बालक-बालिका के अनुपात का अंदाजा लगाना था जहां पहली संतान के रूप में बच्ची पैदा हो चुकी थी. अध्ययन में पाया गया कि वर्ष 1990 में प्रति 1000 लड़कों पर 906 लड़कियां थीं जो 2005 में घटकर 836 रह गई.
भारत में कन्या भ्रूण हत्या (Girl Child Abortion) के उपर किए गए इस अध्ययन के निष्कर्ष में बताया गया कि लिंग अनुपात में गिरावट उन परिवारों में अधिक देखी गई जहां जन्म देने वाली मां ने दसवीं या उससे उच्च कक्षा की शिक्षा हासिल कर रखी थी और जो संपन्न गृहस्थी की थी. लेकिन ऐसे ही परिवारों में यदि पहला बच्चा लड़का है तो दूसरी संतान के मामले में लड़का-लड़की अनुपात में कोई कमी नहीं आई. स्पष्ट है कि कन्या भ्रूण का चुनिंदा गर्भपात (Selective abortion) शिक्षित एवं संपन्न परिवारों में ज्यादा मिलता है.
लैंसेट पत्रिका (Lancet journal) में प्रकाशित यह अध्ययन टोरंटो विश्वविद्यालय के प्रभात झा और भारत के पूर्व रजिस्ट्रार जेनरल डी जयंत के बांठिया द्वारा लिखी गई है. प्रभात झा के अनुसार चुनिंदा गर्भपात (Selective abortion) की प्रवृत्ति आम तौर पर पहली संतान के लड़की होने के मामलों में देखी जाती है. 1980 के दशक में कन्या भ्रूण का चुनिंदा गर्भपात 0.20 लाख था, जो 1990 के दशक में बढ़कर 12 लाख से 40 लाख तथा 2000 के दशक में 31 लाख से 60 लाख तक हो गया.
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