यूरोपीय शरणार्थी संकट : एक विश्लेषण

शरणार्थियों में यह दृढ़ विश्वास कि यूरोप की नियम–बद्ध और मानवीय सरकारें उन्हें जीवन के वैध बुनियादी अधिकारों से वंचित नहीं करेंगी इस समस्या का एक प्रमुख कारण है.

Sep 30, 2015, 17:37 IST

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पिछले कुछ महीनों से यूरोप शरणार्थियों के गंभीर संकट से जूझ रहा है. साल 2015 के शुरुआत में करीब 3 लाख लोगों ने शरण के लिए यूरोप के दरवाजे खटखटाए थे. यह संख्या  वर्ष 2014 में मिले 6.25 लाख आवेदनों के अतिरिक्त है.
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (यूएनएचसीआर) कार्यालय के अनुमान के अनुसार चूंकि सीरिया, इराक और अफगानिस्तान अभी भी आतंकवाद, सांप्रदायिक हिंसा और नागरिक असंतोष की जटिल समस्याओं से जूझ रहे हैं, इसलिए शरणार्थियों के आने का सिलसिला जारी रहेगा.
ये शरणार्थी कौन हैं?
हालांकि अफ्रीकी मूल के शरणार्थियों की समस्या यूरोप के लिए पुरानी है लेकिन हाल में आई तेजी के कई स्रोत हैं.
ज्यादातर शरणार्थी युद्धग्रस्त सीरिया से हैं. साल 2011 में शुरु हुए गृहयुद्ध के बाद से अब तक करीब 20 लाख ( 2 मिलियन ) लोग पलायन कर पड़ोसी देश तुर्की, जॉर्डन और लेबनान में शरण ले चुके हैं. उन्हें संयुक्त राष्ट्र प्रायोजित शिविरों में रहने और बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराई गई हैं.
हालांकि हाल के दिनों में शरणार्थी शिविरों में बढ़ती आबादी और सीरिया संघर्ष का कोई समाधान नहीं दिखता देख शरणार्थियों ने यूरोप के सुरक्षित स्थानों पर जाना शुरु कर दिया है.
सीरिया के अलावा इरान, ईराक, तुर्की, लीबिया, अफगानिस्तान, इरिट्रिया, मिस्र, सूडान, इथोपिया और सोमालिया प्रमुख स्रोत देश हैं.
यूरोप जाना ही क्यों पसंद कर रहे हैं लोग?
यूरोप का प्रवासियों की पसंदीदा जगह होने के कई कारण हैं. ये अलग– अलग देशों के लिए अलग हैं और उन्हें दो श्रेणियों – पुश फैक्टर्स औऱ पुल फैक्टर्स के तहत रखा जा सकता है.

पुश फैक्टर्स
सीरिया, इराक और अफगानिस्तान में लगातार चल रही आतंकवादी गतिविधियां.
सीरिया और इराक में शिया– सुन्नी की सांप्रदायिक हिंसा.
इरीट्रिया में अनिवार्य राष्ट्र सेवा के तौर पर मानवाधिकारों के उल्लंघन ने करीब 5000 लोगों को देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया.
सोमालिया में ठोस राजनीतिक स्थिति के अभाव में कानून की कमी ने नागरिकों को भूमध्य क्षेत्र से पलायन करने पर मजबूर कर दिया है.
पुल फैक्टर्स
भौगोलिक निकटताः शरण चाहने वालों में से अधिकांश लोगों के लिए उनके संकटपूर्ण वर्तमान और इच्छित भविष्य के बीच सिर्फ भूमध्यसागर खड़ा है. इसलिए, यह संकट भूमध्य प्रवासी संकट वाक्यांश का पर्याय बन गया है.
यूरोपीय प्रशासन में विश्वासः शरणार्थियों में यह दृढ़ विश्वास कि यूरोप की नियम–बद्ध और मानवीय सरकारें उन्हें जीवन के वैध बुनियादी अधिकारों से वंचित नहीं करेंगी. यह इस तथ्य से भी स्पष्ट है कि शरणार्थी सउदी अरब, ओमान आदि जैसे उनके सांस्कृतिक समानता वाले देशों में शरण लेने में इच्छुक नहीं है.
रोजगार के अवसरः यूरोप का श्रम बाजार अधिक परिपक्व है, शरणार्थी अपने जीवन को फिर से शुरु करने के लिए तत्काल रोजगार अवसरों को यहां देखते हैं.
शामिल मुद्दे
यूरोप में जारी शरणार्थी संकट के साथ निम्नलिखित मुद्दे भी जुड़े हैं-
डबलिन प्रक्रियाः डबलिन प्रक्रिया के अनुसार शरणार्थी यूरोपीय संघ के जिस देश में सबसे पहले पहुंचता है, वह देश शरण दावों की प्रक्रिया के लिए जिम्मेदार होगा. इसने शरणार्थियों के सबसे पहले पहुंचने वाले देशों जैसे  ग्रीस और इटली पर बहुत अधिक दबाव बना दिया है.
चूंकि ज्यादातर शरणार्थी जर्मनी, स्वीडन या फ्रांस जाना चाहते हैं तब सवाल यह उठता है कि एक ऐसे देश में उन्हें पंजीकृत क्यों किया जाए और रहने क्यों दिया जाए, जहां वे रहना ही नहीं चाहते.
यूरोपीय संघ के दोषः संकट ने यूरोप के भीतर संरचनात्मक गलतियों को उजागर कर दिया है. हंगरी जैसे कम वित्तीय संसाधनों वाले छोटे देश इस बोझ को उठाने के लिए तैयार नहीं हैं.
इसके अलावा, कुछ देशों ने तो इस बात की वकालत की है कि फ्रांस और जर्मनी जैसे बड़े देशों को इस बोझ को उठाना चाहिए क्योंकि यह समस्या उनके (जर्मनी और फ्रांस) नाटो– नीत युद्ध में भागीदारी की वजह से ही पैदा हुई है.
इसके अलावा, यूरोपीय संघ में शरणार्थियों को स्थांतरित करने के सूत्र पर भी बड़े देशों के बीच असहमति बढ़ रही है.
यूरोप की नैतिक दुविधाः कई यूरोपीय अर्थव्यवस्थाएं आज भी 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट से उबर नहीं पाई  हैं, इसलिए मितव्ययिता के उपायों के बिना वे शरणार्थियों के हितों का ख्याल कैसे रख पाएंगी.
इसके अलावा वैध शरण की इच्छा रखने वालों को अनुमति न देना, यूरोपीय संविधान के अनुच्छेद 18 ( शरण का अधिकार), अनुच्छेद II-78 और अनुच्छेद III-266 का उल्लंघन होगा. यूरोपीय संघ इसी संविधान पर टिका है.
शेंगेन समझौताः पिछले एक महीने में शरणार्थी की आवक को नियंत्रित करने के लिए जर्मनी और हंगरी जैसे देशों ने समझौते के कार्यान्वयन को निलंबित कर दिया है. इन देशों का एक मात्र उद्देश्य लोगों को बिना किसी अनिवार्य जांच के अतंरराष्ट्रीय सीमाओं में आवाजाही की सुविधा मुहैया कराना है.
शरणार्थियों की एकताः शरणार्थियों की सबसे मुख्य समस्या है कि यूरोपीय समाज में बढ़ते इस्लाम विरोधी भावना के बीच एकीकरण के प्रयास कितने सफल होंगे.
अब तक उठाए गए कदम -
23 सितंबर 2015 को शिखर सम्मेलन स्तर की बैठक में यूरोपीय संघ के देश शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए काम कर रही संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों को अतिरिक्त 1.1 बिलियन यूरो देने पर सहमत हुए.
यूरोपीय संघ ने भूमध्यसागर में नावों के डूबने की घटना से बचने के लिए समुद्र निगरानी हेतु धन उपलब्ध कराने की बात कही है.एक अनुमान के अनुसार सिर्फ साल 2014 में ही नजदीकी यूरोपीय द्वीपों पर जाने के दौरान 3500 लोग मृत पाए गए या समुद्र में लापता हो गए.
यूरोपीय आयोग ने उद्देश्य और संख्या मानदंड– आबादी का 40 फीसदी, जीडीपी का 40 फीसदी, पिछले शरण आवेदन की औसत संख्या का 10 फीसदी, बेरोजगारी दर का 10 फीसदी, का उपयोग करते हुए अनिवार्य वितरण के आधार पर 120000 शरणार्थियों के आंतरिक स्थांतरण का प्रस्ताव दिया है.
इसके अलावा यह सूत्र यूरोपीय संघ भर में 75 फीसदी या इससे अधिक के औसत मान्यता दर के साथ आवेदकों की राष्ट्रीयता के लिए लागू होता है.
यूरोप के अलावा अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने आगामी एक वर्ष में क्रमशः 10000 और 12000 शरणार्थियों को अपने यहां जगह देने की इच्छा जताई है.

भारत के लिए सबक
भारत के लिए शरणार्थी समस्या नयी नहीं है. भारत ने 1971 में बांग्लादेश से और 1979 में सोवियत संघ के हस्तक्षेप के बाद अफगानिस्तान से आए शरणार्थी और श्रीलंका में सेना और एलटीटीई के बीच चले गृह युद्ध के दौरान देश में आने वाले शरणार्थियों की समस्या का सामना किया है.
जारी संकट से प्रेरणा लेते हुए भारत को अपने राजनयिक संबंधों को मजबूत करना होगा और शरणार्थियों से सम्बन्धित संकटों पर विशेष सम्मेलन करना होगा.
भारत के लिए यह इसलिए भी बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि बांग्लादेश की आधी आबादी कम ऊंचाई वाले तटीय क्षेत्रों ( एलईसीजेड)– समुद्र तल से 10 मीटर ऊंचाई में रहती है. जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र के स्तर में होने वाली बढ़ोतरी में इन इलाकों के डूबने का खतरा है.  
इसके अलावा मालदीव पर भी इसी वजह से विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है.
निष्कर्ष
जारी संकट इस तथ्य का गंभीर प्रमाण है कि दुनिया के अधिकांश समुदाय अभी भी भूख, गरीबी, आतंकवाद, कु–शासन, सांप्रदायिक हिंसा आदि जैसी पुरानी समस्याओं की वजह से अनिवार्य सुविधाओं से वंचित हैं.
हालांकि हमनें शांति, सुरक्षा और सामाजिक–आर्थिक विकास की दिशा में लंबा सफर तय कर लिया है लेकिन अभी भी लाखों लोग जीवन की मूलभूत आवश्यकताओँ के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
यह दुनिया के नेताओं को एक साथ आने और पलायन की समस्या का समाधान ढूंढ़ने का समय है ताकि हाल ही में अपनाए गए स्थायी विकास लक्ष्यों को समय से प्राप्त किया जाना सुनिश्चित किया जा सके.

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