लीबिया में सशस्त्र समूहों द्वारा त्रिपोली में कब्ज़े के परिणामस्वरूप सरकार द्वारा मंत्रालयों पर नियंत्रण खो देने के बाद संसद ने 1 सितंबर 2014 को प्रधानमंत्री के रूप में अब्दुल्ला अल थींनी को पुनर्नियुक्त किया. पूर्व रक्षा मंत्री थींनी, मार्च 2014 के बाद से लीबिया के प्रधानमंत्री रहे थे.
अब्दुल्ला अल थींनी को 106 में से 64 प्रतिनिधियों ने मतदान किया और इन वोटों के आधार पर सदन ने उन्हें दो सप्ताह के भीतर एक संकट सरकार बनाने के निर्देश दिए. अब्दुल्ला अल थींनी को एक बड़े गृहयुद्ध का की कगार पर खड़े देश में सरकार का नियंत्रण स्थापित करने का जिम्मा सौंपा गया.
पृष्ठभूमि
यह कदम इस्लामिक संगठनों के द्वारा नई संसद को अस्वीकार करने और उमर अल हास्सी को एक सप्ताह में नयी सरकार बनाने के लिए कहने के बाद उठाया गया. इसके बाद इस्लामिक संगठनों के समर्थक बलों ने राजधानी त्रिपोली पर नियंत्रण कर लिया.
उन्होंने सरकार के मुख्यालय, मंत्रालयों और इमारतों के साथ- साथ त्रिपोली में अमेरिकी दूतावास पर भी नियंत्रण कायम कर लिया जो सुरक्षा कारणों से जुलाई 2014 खाली करवा लिया गया था.
यह माना जा रहा है बलों ने लीबिया के पश्चिमी शहर तवेरघा से विस्थापित लोगों को नुकसान करने के लिए त्रिपोली पर हमला किया. मिसराता बलों ने तवेरघा के लोगों पर लीबिया के पूर्व तानाशाह मुअम्मर गद्दाफी का समर्थक होने का आरोप लगाया जिसे वर्ष 2011 में अमेरिका - नाटो समर्थित विद्रोह के बाद पद से हटा दिया गया था.
पूर्वी बंदरगाह शहर बांघज़ी में अलग संघर्ष की वजह से त्रिपोली में स्थिति के खराब हो गयी जहाँ पर लीबिया सेना के एक स्वयंभू जनरल, खलीफा हफ़्तार ने इस्लामी उग्रवादियों के खिलाफ युद्ध की घोषणा की. इसके पश्चात इस्लामी मिलिशिया ने खलीफा हफ़्तार के लीबिया के विशेष बलों के नियंत्रण वाले बांघज़ी के नागरिक और सैन्य हवाई अड्डे पर कब्जा करने के लिए हमले शुरू कर दिये.
हालांकि, त्रिपोली में इस्लामिक ताकतों की जीत के बाद अभी तक देश में तेल का उत्पादन प्रभावित नहीं हुआ है.
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