संयुक्त राष्ट्र संघ की लीक हुई रिपोर्ट में ग्रीनहाउस गैसों के तेजी से बढ़ने का संकेत

Jan 20, 2014, 12:02 IST

संयुक्त राष्ट्र संघ की आईपीसीसी प्रारूप रिपोर्ट17 जनवरी 2014 को लीक हो गई.

संयुक्त राष्ट्र संघ की आईपीसीसी प्रारूप रिपोर्ट17 जनवरी 2014 को लीक हो गई. आईपीसीसी प्रारूप रिपोर्ट में ग्रीनहाउस गैसों का स्तर बढ़ने के बारे में चेतावनी दी गई है और वह इस मुद्दे से निपटने के लिए अधिक बड़े प्रयास किए जाने की मांग करती है. अंतरराष्ट्रीय जलवायु-परिवर्तन समूह (आईपीसीसी) की रिपोर्ट के अनुसार यदि वर्तमान स्थिति जारी रही, तो अत्यधिक महंगी प्रौद्योगिकी की जरूरत पड़ेगी.

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रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2000 से 2010 के दौरान कार्बनडाई आक्साइड (CO2) 2.2 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ी है और यह बढ़ोतरी 1970 से 2000 तक की अवधि में हुई बढ़ोतरी से लगभग दोगुनी अधिक है. रिपोर्ट में वैश्विक समुदाय से उत्सर्जनों में अविलंब कटौती करने और स्वच्छ ऊर्जा की ओर बदलाव करने का सुझाव दिया गया है.

रिपोर्ट के अनुसार शुरू की गई संरक्षण-प्रक्रिया की तुलना में जिस गति से CO2 बढ़ेगी, उससे पर्यावरण पर अनुकूल प्रभाव छोड़ने में विफलता ही मिलेगी. रिपोर्ट ने तेज गति से बढ़ती जनसंख्या और आर्थिक संवृद्धि को ग्रीनहाउस उत्सर्जनों में बढ़ोतरी के लिए जिम्मेदार ठहराया है. रिपोर्ट में सरकार से स्वच्छतर ऊर्जा की ओर बदलाव पर अधिक खर्च करने का निर्देश दिया गया है.

संयुक्त राष्ट्र द्वारा इस अंशत: तैयार की गई रिपोर्ट को अप्रैल 2014 में प्रकाशित किया जाना था, क्योंकि परियोजना पर कार्य अभी चल रहा है. कोपेनहेगन जलवायु सम्मेलन 2009 में विश्व के राजनेताओं ने वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी को 2C तक सीमित करने के प्रयास करने पर सहमति जताई थी.

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कोपेनहेगन जलवायु सम्मेलन 2009


कोपेनहेगन जलवायु परिवर्तन सम्मेलन ने जलवायु-परिवर्तन नीति को उच्चतम राजनीतिक स्तर तक उठाया. लगभग 115 विश्व-नेताओं ने इस सेगमेंट में सहभागिता कर इसे न्यूयार्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय से बाहर आयोजित विश्व-नेताओं की अब तक की सबसे बड़ी सभाओं में से एक बना दिया.     

कोप 15 / सीएमपी 5 वार्ता-प्रक्रिया में एक महत्त्वपूर्ण घटना थी
• इसने कारगर वैश्विक जलवायु-परिवर्तन सहयोग के लिए आवश्यक बुनियादी सुविधाओं पर वार्ता को उल्लेखनीय ढंग से आगे बढ़ाया, जिसमें क्योटो प्रोटोकॉल की स्वच्छ विकास प्रक्रिया में सुधार शामिल हैं.
• इसने डाउन ऑप्शंस को संकुचित करने और वार्ताओं में बाद में मुख्य मुद्दों पर चुने जाने वाले विकल्प स्पष्ट करने में उल्लेखनीय प्रगति की.     
• इसने कोपेनहेगन समझौता प्रस्तुत किया, जिसमें अल्पकाल और दीर्घकाल दोनों में कार्बन को नियंत्रित करने और जलवायु-परिवर्तन के प्रति प्रतिक्रिया करने का स्पष्ट इरादा जाहिर किया.    

कोपेनहेगन समझौते में कई महत्त्वपूर्ण तत्त्व शामिल थे, जिन पर सरकारों के मतों में सशक्त अभिमुखता थी. इनमें वर्ष 2015 में समीक्षा की शर्त पर अधिकतम वैश्विक औसत तापमान में बढ़ोतरी को पूर्व-औद्योगिक स्तरों के ऊपर 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक न होने देने का लक्ष्य शामिल था. हालाँकि इसे व्यावहारिक रूप देने की बात पर कोई सहमति नहीं हुई.  इसमें तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री से कम पर सीमित करने पर विचार करने का एक संदर्भ भी शामिल था — जो असुरक्षित विकासशील देशों द्वारा की गई एक मुख्य मांग थी.


केंद्रीय तत्त्व में शामिल अन्य बिंदु      
• विकासशील देशों में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन घटाने और जलवायु-परिवर्तन के अनिवार्य प्रभावों को अनुकूल बनाने के कार्यों के लिए धन उपलब्ध कराने का विकसित देशों का वायदा. विकसित देशों ने 2010-2012 की अवधि के लिए 100 अरब डॉलर प्रति वर्ष देने और 2020 तक विभिन्न स्रोतों से 100 अरब डॉलर प्रति वर्ष का दीर्घावधि वित्त और जुटाने का वायदा किया था.     
• विकसित देशों की कार्रवाइयों के मापन, रिपोर्टिंग और सत्यापन का समझौता, जिसमें "अंतरराष्ट्रीय परामर्शन और विश्लेषण" का एक संदर्भ शामिल था जो अभी भी परिभाषित होना शेष है.    
• चार नए निकायों की स्थापना : आरईडीडी-प्लस पर एक क्रियाविधि, वित्तीय प्रावधानों के कार्यान्वयन का अध्ययन करने के लिए कोप के तहत एक उच्चस्तरीय पैनल, कोपेनहेगन हरित जलवायु निधि, और एक प्रौद्योगिकी तंत्र.

कोप द्वारा दो केंद्रीय वार्ता-समूहों, एडब्ल्यूजी-एलसीए और एडब्ल्यूजी-केपी के कार्य का विस्तार कर दिया गया.

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