सर्वोच्च न्यायालय के पांच जजों की संविधान पीठ ने 16 जुलाई 2014 को राज्य सरकारों एवं केंद्र शासित प्रदेशों से इच्छामृत्यु (यूथेनेशिया) पर अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए नोटिस जारी किया. राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को अपनी प्रतिक्रिया 17 सितंबर 2014 तक देनी है.
पांच जजों की इस संविधान पीठ में भारत के मुख्य न्यायाधीश आर. एम. लोढ़ा और जस्टिस जेएस खेहर, जे चेलामेश्वर, एके सीकरी और रोहिन्टन एफ नरीमन शामिल थे.
सर्वोच्च न्यायालय की पीठ द्वारा जारी नोटिस की मुख्य बातें
• सुप्रीमकोर्ट की पीठ ने राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों से भी राय लेनी जरूरी इसलिए समझी क्योंकि यह मुद्दा सिर्फ यूथेनेशिया के संवैधानिकता का नहीं बल्कि इसमें नैतिकता, धर्म और चिकित्सा विज्ञान भी शामिल है.
• दुनिया भर में यूथेनेशिया को कानून बनाने पर चल रही चर्चा की रौशनी में यह सवाल उठा कि यूथेनेशिया का दुरुपयोग रोकने के लिए क्या उपाय होने चाहिए और याचिकाकर्ता से उनके जीवन को खत्म करने की सबसे कम दर्दनाक तरीके के बारे में पूछा जाए.
• हालांकि, अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी के इस दलील को कि यूथेनेशिया कानून का दुरुपयोग किया जा सकता है इसलिए इसे कानून नहीं बनाया जाना चाहिए, को खारिज कर दिया गया. पीठ ने कहा कि कानून का दुरुपयोग हो सकता है इसलिए यूथेनेशिया को वैध न किया जाए, गलत होगा.
• इस मुद्दे पर गौर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने वरिष्ठ वकील और भूतपूर्व सॉलिसिटर जनरल टी आर अंध्यारुजीना को सहायता करने के लिए नियुक्त किया है.
यह नोटिस सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने गैर– सरकारी संगठन (एनजीओ) कॉमन कॉज द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर दिया. अपनी याचिका में कॉमन कॉज ने कहा कि, अगर चिकित्सा विशेषज्ञ की राय में किसी व्यक्ति का इलाज उपचार के परे जा चुका है और वह व्यक्ति इस स्थिति में है जहां से उसका जिंदा वापस आना नामुमकिन है, तब उस व्यक्ति को इलाज न कराने और मृत्यु को अपनाने का हक होना चाहिए, अगर व्यक्ति जिंदा रहने की इच्छा छोड़ चुका हो.
हालांकि, अटॉर्नी जनरल ने कहा है कि दुरुपयोग की संभावना के अलावा इससे कई मुद्दे पैदा होंगें इसलिए इस मामले पर विधानमंडल को विचार करना चाहिए.
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