सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस कुरियन जोसफ ने 15 जुलाई 2015 को केंद्र सरकार से भारत के मुख्य न्यायाधीश की संवैधानिक स्थिति के बारे में स्पष्टता की मांग की.
यह प्रश्न न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) अधिनियम, 2014 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान उठाया गया.
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में गठित छह सदस्यीय एनजेएसी, भारत के मुख्य न्यायाधीश सहित उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्तियों और तबादलों में कार्यपालिका एवं न्यायपालिका को बराबरी का दर्जा देता है.
न्यायमूर्ति कुरियन द्वारा मांगे गए स्पष्टीकरण के अनुसार मुख्य न्यायाधीश की संवैधानिक भूमिका संविधान की अनुसूची 3 और अनुच्छेद 124 के दो अलग पदों के साथ निहित हैं, जिसकी अस्पष्टता पर न्यायमूर्ति कुरियन द्वारा स्पष्टीकरण की मांग की गयी.
अनुसूची 3 में शपथ और प्रतिज्ञान के रूप में जो मसौदा दिया गया है उसमें कहा गया है कि मुख्य न्यायाधीश भारत के उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेता है. अनुच्छेद 124 के अनुसार राष्ट्रपति के वारंट के अनुसार उसे भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में जाना जाता है.
पूर्व पदनाम के अनुसार मुख्य न्यायाधीश को सुप्रीम कोर्ट के विशेष कार्यालय में कार्य करने के लिए निर्धारित किया गया है तथा उसके लिए अलग से किसी शपथ की व्यवस्था नहीं की गयी.
न्यायमूर्ति कुरियन के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश की भूमिका पर एनजेएसी 2014 की वैधता का विशेष महत्व है क्योंकि मुख्य न्यायाधीश छह सदस्यों वाले आयोग में एक सदस्य है तथा उसे एनजेएसी अध्यक्ष के तौर पर कोई वीटो पावर भी नहीं दी गयी है.
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