इस कला को ग्रीको बौद्ध परंपरा के रूप में जाना जाता है। यह एक प्रसिद्ध प्राचीन भारतीय कला है। इस कला का उल्लेख वैदिक तथा बाद के संस्कृत साहित्य में मिलता है। गांधार कला की विषय-वस्तु भारतीय थी, परन्तु कला शैली यूनानी और रोमन थी। इसलिए गांधार कला को ग्रीको-रोमन, ग्रीको बुद्धिस्ट या हिन्दू-यूनानी कला भी कहा जाता है। गांधार कला को महायान धर्म के विकास से काफी प्रोत्साहन मिला।यह शैली अपने आप में विदेशी तकनीक को प्रदर्शित करता है। इस कला शैली में संगमरमर के स्थान पर ग्रे बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया है।साथ ही सफेद और काले रंग के पत्थर का भी इस्तेमाल किया गया है। गांधार कला शैली में विभिन्न परंपराओं (पार्थियन, बक्ट्रियन और अक्मेनियन) के विविध लक्षण विद्यमानहैं।भरहुत एवं सांची में कनिष्क द्वारा निर्मित स्तूप गांधार कला के महत्वपूर्ण उदाहरण हैं।
गांधार कला परंपरा में बुद्ध की विभिन्न मुद्राओ को वर्णित किया गया है, जिनका वर्णन निम्नलिखित हैं:
भूमिस्पर्शमुद्रा: पृथ्वी को छूते हुए
ध्यानमुद्रा: ध्यान लगाए हुए
धर्मचक्रमुद्रा: उपदेश मुद्रा
अभयमुद्रा: किसी भी प्रकार का कोई भय नहीं
गांधार कला के टुकड़े जिन-जिन स्थलों एवं प्रमुख केन्द्रों पर पाए गए हैं, उनमें प्रमुख केन्द्र जलालाबाद, हड्डा, बामियान, स्वात घाटी और पेशावर थे।कुषाण और शक दोनों ने गांधार परंपरा को संरक्षण प्रदान किया था।
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