भारतीय संविधान सभा

भारतीय संविधान सभा एक संप्रभु ढांचा था जिसका गठन कैबिनेट मिशन की सिफारिश पर किया गया था जिसने देश के लिए एक संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए 1946 में भारत का दौरा किया था। भारत के लिए एक संवैधानिक मसौदा तैयार करने के लिए डॉ. बी. आर. अम्बेडकर की अध्यक्षता में एक मसौदा समिति का गठन किया गया था। हालांकि, बाद में संविधान सभा को अपने गठन के बाद कुछ आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा था।

Dec 16, 2015, 17:07 IST

भारतीय संविधान सभा एक संप्रभु ढांचा था जिसका गठन कैबिनेट मिशन की सिफारिश पर किया गया था जिसने देश के लिए एक संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए 1946 में भारत का दौरा किया था। भारत के लिए एक संवैधानिक मसौदा तैयार करने के लिए डॉ. बी. आर. अम्बेडकर की अध्यक्षता में एक मसौदा समिति का गठन किया गया था। हालांकि, बाद में संविधान सभा को अपने गठन के बाद कुछ आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा था।

भारतीय संविधान सभा का संरचना

कैबिनेट मिशन द्वारा प्रदत्त ढांचे के आधार पर 9 दिसंबर, 1946 को एक संविधान सभा का गठन किया गया। संविधान निर्माण संस्था का चुनाव 389  सदस्यों वाली प्रांतीय विधान सभा द्वारा किया गया था जिसमें रियासतों से 93 और ब्रिटिश भारत से 296 सदस्य शामिल थे। रियासतों और ब्रिटिश भारत प्रांतों को उनकी संबंधित आबादी और मुस्लिम, सिख तथा अन्य समुदायों के आधार पर अनुपात में विभाजित किया गया था। सीमित मताधिकार के बावजूद भी संविधान सभा में भारतीय समाज के सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व मिला था।

संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को नई दिल्ली में हुई थी।  डॉ सच्चिदानंद को सभा के अंतरिम अस्थायी अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया गया था। हालांकि, 11 दिसंबर, 1946 को डॉ राजेन्द्र प्रसाद को स्थायी अध्यक्ष और एच. सी. मुखर्जी को संविधान सभा का उपाध्यक्ष निर्वाचित किया गया।

संविधान सभा के कार्य

  1. संविधान तैयार करना।
  2. अधिनियमित कानूनों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल किया गया।
  3. 22 जुलाई, 1947 को संविधान सभा द्वारा राष्ट्रीय ध्वज को अपनाया गया।
  4. इसने मई 1949 में ब्रिटिश राष्ट्रमंडल में भारत की सदस्यता को स्वीकार कर मंजूरी दे दी थी।
  5. 24 जनवरी 1950 को भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में डॉ राजेन्द्र प्रसाद को चुना गया था ।
  6. 24 जनवरी 1950 को इसने राष्ट्रीय गान को अपनाया।
  7. 24 जनवरी 1950 को इसने राष्ट्रीय गीत को अपनाया।

उद्देश्य प्रस्ताव (ऑब्जेक्टिव रेजॉल्यूशन)

उद्देश्य प्रस्ताव को पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा 13 दिसंबर, 1946 को स्थानांतरित कर दिया गया था जिसने संविधान तैयार करने के लिए दर्शन मार्गदर्शक सिद्धांत प्रदान किये थे और इसने भारतीय संविधान की प्रस्तावना का रूप ले लिया था। हालांकि, इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से 22 जनवरी को संविधान सभा द्वारा अपनाया गया था।

प्रस्ताव में कहा गया कि संविधान सभा सबसे पहले भारत को एक स्वतंत्र संप्रभु गणराज्य के रूप में घोषित करेगी जिसमें सभी प्रदेशों, स्वायत्त इकाइयों को बनाए रखना और अवशिष्ट शक्तियों के अधिकारी; भारत के सभी लोगों को न्याय, स्थिति की समानता, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, आस्था, पूजा, पेशे, संघ की स्वतंत्रता की गारंटी देना और कानून एवं सार्वजनिक नैतिकता के तहत अल्पसंख्यकों, पिछड़े, दलित वर्गों को पर्याप्त सुरक्षा उपाय प्रदान करना; गणराज्य के क्षेत्र की अखंडता और भूमि, समुद्र और हवा पर अपना संप्रभु अधिकार तथा इस प्रकार भारत का विश्व शांति को बढ़ावा देने के लिए और मानव जाति के कल्याण के लिए योगदान देना शामिल है।

संविधान सभा की समितियां

संविधान सभा ने संविधान बनाने के विभिन्न पहलुओं पर अध्ययन के लिए आठ प्रमुख समितियों का गठन किया था- केंद्रीय शक्तियों वाली समिति, केंद्रीय संविधान समिति, प्रांतीय संविधान समिति, मसौदा समिति, मौलिक अधिकारों और अल्पसंख्यकों के लिए सलाहकार समिति, प्रक्रिया समिति के नियम, राज्यों की समिति (राज्यों के साथ बातचीत के लिए समिति), जवाहर लाल नेहरू, संचालन समिति।

इन आठ प्रमुख समितियों के अलावा, सबसे महत्वपूर्ण मसौदा समिति थी। 29 अगस्त 1947 को संविधान सभा ने भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए डॉ बी.आर. अम्बेडकर की अध्यक्षता में एक मसौदा समिति का गठन किया था।

संविधान सभा की आलोचना

जिन बिंदुओं के आधार पर संविधान सभा की आलोचना की गयी थी वो इस प्रकार हैं:

  1. एक लोकप्रिय ढांचा नहीं: आलोचकों का मानना है कि संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव सीधे भारत की जनता द्वारा नहीं किया गया था। प्रस्तावना कहती है कि संविधान, भारत के लोगों द्वारा अपनाया गया है जबकि इसे कुछ व्यक्तियों द्वारा अपनाया गया था जो भारतीय लोगों द्वारा निर्वाचित तक नहीं थे।
  2. एक संप्रभु विहीन ढांचा: आलोचक इस बात को लेकर बहस करते हैं कि संविधान सभा का ढांचा संप्रभु नहीं है क्योंकि इसका निर्माण भारत के लोगों के द्वारा नहीं किया गया था। यह भारत की आजादी से पहले कार्यकारी कार्रवाई के माध्यम से ब्रिटिश शासकों के प्रस्तावों द्वारा बनाया गया था तथा इसकी संरचना का निर्धारण भी उन्हीं के द्वारा किया गया था।
  3. वक्त की बर्बादी: आलोचकों का हमेशा से यह मानना रहा है कि संविधान तैयार करने के लिए लिया गया समय दूसरे देशों की तुलना में बहुत ज्यादा था। अमेरिका के संविधान निर्माताओं ने संविधान तैयार करने के लिए केवल चार महीने का समय लिया जो कि आधुनिक दुनिया में अग्रणी था।
  4. कांग्रेस का बोलबाला: आलोचक हमेशा इस बात को लेकर आलोचना करते हैं कि संविधान सभा में कांग्रेस का काफी दबदबा था और अपने द्वारा तैयार संविधान के मसौदे के माध्यम से उसने देश के लोगों पर अपनी सोच थोप दी थी।
  5. एक समुदाय का बोलबाला: कुछ आलोचकों के अनुसार, संविधान सभा में धार्मिक विविधता का अभाव था और केवल हिंदुओं का वर्चस्व था।
  6. वकीलों का बोलबाला: आलोचकों का यह भी मानना है कि संविधान संभा में वकीलों के प्रभुत्व की वजह से यह काफी भारी और बोझिल बन गया था उन्होंने एक आम आदमी को समझने के लिए संविधान की भाषा को मुश्किल बना दिया था। संविधान का मसौदा तैयार करने के दौरान समाज के अन्य वर्ग अपनी चिंताओं को जाहिर नहीं कर पाये और निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग नहीं ले सके थे।

इसलिए, संविधान सभा भारत की अस्थायी संसद बन गयी और महत्वपूर्ण रूप से भारत के ऐतिहासिक संविधान का मसौदा तैयार करने में अपना योगदान दिया और बाद में इसने भारतीय राजनीतिक व्यवस्था का निर्माण करने में मदद की।

Hemant Singh is an academic writer with 7+ years of experience in research, teaching and content creation for competitive exams. He is a postgraduate in International
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