रक्षा बंधन का पर्व श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस बार यह 19 अगस्त 2024 को मनाया जा रहा है। यह एक पर्व तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भाई और बहन के अटूट प्रेम और बंधन का भी प्रतीक है।
यही वजह है कि प्रतीक के तौर पर बहनें अपने भाई की कलाई पर कच्चा धागा बांधकर उनसे अपनी रक्षा का वचन लेती हैं। इस कड़ी में क्या आप जानते हैं कि भारत में रक्षा बंधन का पर्व कैसे शुरू हुआ था ? यदि आप नहीं जानते हैं, तो इस लेख के माध्यम से हम इस बारे में जानेंगे।
पौराणिक कथाओं में है जिक्र
रक्षा बंधन के पर्व का जिक्र पौराणिक कथाओं में भी मिलता है। इस कड़ी में महाभारत काव्य के मुताबिक, एक बार भगवान श्रीकृष्ण की अंगुली में चोट लगी और खून निकलने लगा। इसे देख पांचाली द्रौपदी से रहा नहीं गया और उन्होंने अपने पल्लू का कुछ भाग फाड़कर श्रीकृष्ण की अंगुली पर बांध दिया, जिससे उनका रक्तस्राव रूक गया। श्रीकृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन माना और उनकी रक्षा का वचन दिया।
मेवाड़ के इतिहास में दर्ज है रक्षा बंधन
मेवाड़ के राजा राणा सांगा का विवाह रानी कर्णावती से हुआ था। उन्होंने अपने जीवन में कई युद्ध लड़े और इस बीच उनका युद्ध गुजरात के शासक बहादुर शाह से हुआ, जिसमें वह वीरगति को प्राप्त हुए। इस दौरान रानी कर्णावती ने दिल्ली के शासक हुमायूं को पत्र लिखने के साथ राखी भेजकर अपनी रक्षा की गुहार लगाई। हालांकि, यह पत्र हुमायूं तक देरी से पहुंचा और तब तक रानी कर्णावती ने आत्मसम्मान के लिए जौहर कर लिया था।
बंगाल विभाजन पर राखी
साल 1905 का वह समय था, जब ब्रिटिश ने बंगाल विभाजन कर दिया था। इससे भारतीयों में रोष देखा गया और सड़कों पर बड़ी संख्या में धरना-प्रदर्शन हुआ। इस बीच गुरुदेव के नाम से मशहूर और राष्ट्र-गान के रचयिता रबिंद्रनाथ टैगोर ने राखी का पर्व शुरू किया और एक-दूसरे की कलाई पर राखी बांध रक्षा का पर्व मनाया। ऐसे में भारत में रक्षा बंधन पर्व को और मजबूती मिली।
राजस्थान में भाभियों की कलाई पर राखी
आपको बता दें कि राजस्थान में विशेष रूप से मारवाड़ी समुदाय की महिलाएं अपने भाई की कलाई के बदले अपनी भाभियों की कलाई पर राखी बांधती हैं। इसके पीछे तर्क यह है कि उनके भाई के पत्नी उनके भाई के सबसे करीब होती हैं और ऐसे में वे उनका अच्छे से ध्यान रखने के साथ उनकी रक्षा के लिए भी जिम्मेदार हैं।
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