कृषि आजीविका का एक महत्वपूर्ण सादन है क्योंकि यह खेती और पशुपालन के माध्यम से उत्पादों जैसे भोजन, खाद्य, फाइबर और कई अन्य वांछित उत्पादों का उत्पादन करने की प्रक्रिया है। यह मानव उपयोग के लिए पौधों और जानवरों के विकास का प्रबंधन करने की एक कला है।
आधुनिक कृषि क्या है?
कृषि ऐसी नवप्रवर्तन शैली और कृषि पद्धति है जिसमें स्वदेशी ज्ञान के साथ-साथ आधुनिक ज्ञान, आधुनिक उपकरण तथा प्रत्येक पहलु जैसे खेत की तैयारी, खेत का चुनाव, खरपतवार नियंत्रण, पौध सरंक्षण, फसलोत्तर प्रबंधन, फसल की कटाई आदि जैसी महत्वपूर्ण कृषि पद्धतियों के उपयोग को आधुनिक कृषि कहते हैं। इस तरह की कृषि में संसाधनों का अनुकूलन होता है जिससे किसानों की दक्षता और उत्पादकता बढती है।
पर्यावरण पर आधुनिक कृषि का प्रभाव
जैसा कि हम जानते हैं कि आधुनिक कृषि ने ना केवल भोजन की सामर्थ्य तथा जैव ईंधन का उत्पादन को बढाया है लेकिन साथ-साथ ही हमारी पर्यावरणीय समस्याओं को भी बढाया है क्युकी इस कृषि पद्दति में ज्यादा उपज देने वाली विविधता के संकर बीज और प्रचुर मात्रा में सिंचाई जल, उर्वरक और कीटनाशकों का उपयोग होता है। आधुनिक कृषि कैसे पर्यावरण पर प्रभाव डालती है नीचे चर्चा की गई है:
भू-क्षरण
भूमि के कणों का अपने मूल स्थान से हटने एवं दूसरे स्थान पर एकत्र होने की क्रिया को भू-क्षरण या मृदा अपरदन कहते हैं। आधुनिक कृषि में अत्यधिक जल आपूर्ति के कारण खेत के ऊपर की उपजाऊ मिट्टी का निष्कासन हो जाता है। जिसकी वजह से मिट्टी की पोषक तत्वों कम होने लगते हैं और मिट्टी की उर्वरता की कमी के कारण उत्पादकता कम हो जाती है। यह ग्लोबल वार्मिंग को भी बढाता है क्युकी अत्यधिक जल आपूर्ति के कारण जल निकायों की गाद के कारण मृदा कार्बन वायुमंडल में उत्सर्जित हो जाता है।
विश्व भर में स्थानांतरण कृषि के स्थानीय नामों की सूची
भूमि-जल का प्रदूषित होना
भूमि-जल, सिंचाई के लिए महत्वपूर्ण स्रोतों में से एक है। आधुनिक कृषि में अत्याधिक नाइट्रोजन उर्वरक के इस्तेमाल से मिट्टी में नाइट्रेट के स्तर को बढ़ावा मिलता है जो भूमि-जल को दूषित कर देता है। अगर नाइट्रेट का स्तर भूमि जल में 25 mg/L से अधिक हो जाये तो गंभीर बीमारी हो सकती है जैसे की ब्लू बेबी सिंड्रोम (Blue Baby Syndrome), जो ज्यादातर शिशुओं के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
जल-जमाव और लवणता
कृषि के लिए जल निकासी का उचित प्रबंधन करना बहुत महत्वपूर्ण है लेकिन किसान उत्पादकता बढ़ाने के चक्कर में अत्याधिक जल आपूर्ति करने लगते हैं जिसकी वजह से जल-जमाव हो जाता है जो मिट्टी के लवणता बढाता है और मिट्टी की उत्पादकता कम हो जाती है।
सुपोषण
जब किसी भी जलाशय या जल श्रोत को कृत्रिम या गैर-कृत्रिम पदार्थों जैसे नाइट्रेट्स और फॉस्फेट से समृद्ध किया जाता है तो सुपोषण (Eutrophication) कहलाता है। इस समृद्धकरण के कारण जल में बायोमास अत्याधिक हो जाता जिसके वजह जल में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है।
कीटनाशक के अत्याधिक उपयोग
आधुनिक कृषि में कीटनाशकों को नष्ट करने और फसल उत्पादन बढ़ाने के लिए कई कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है। जैसे - पहले कीटों को मारने के लिए आर्सेनिक, सल्फर, सीसा और पारा का इस्तेमाल किया गया था। फिर बाद में किटनाशक Dichloro Diphenyl Trichloroethane (DDT) का इस्तेमाल किया गया लेकिन यह हानिकारक कीट के साथ लाभकारी कीट को भी नष्ट कर देता था। ये कीटनाशक बायोडिग्रेडेबल होते हैं जो मानव के खाद्य श्रृंखला में जुड़े जाते है जो मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानिकारक है। इसलिए आज के दौर में कृषि के लिए जैविक खाद के इस्तेमाल पर जोर दिया जा रहा है।
इसलिए कृषि में आधुनिकता के लिए आधुनिक एग्रोनोमी के माध्यम से पौधों में संकरण, कीटनाशकों का इस्तेमाल और मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने के लिए तकनिकी सुधार किये जा रहे हैं जिससे कृषि उत्पादन को बढाया जा सके और साथ ही साथ मनुष्य के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़े।
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